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________________ ८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदीजी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व प्रचार था, उसकी सर्जनात्मक और नवोन्मेषशालिनी शक्ति और उच्च आकांक्षाओं और साहसिक प्रकृति का ह्रास हो गया था और भारतीय इस्लामी सभ्यता एवं संस्कृति का सूर्य अस्ताचलगामी हो चुका था, तो दूसरी ओर वह परम्परा और रूढिप्रियता तथा पौराणिकता का मोह छोड़कर नवीनता की ओर बड़ी तीव्रता के साथ बढ रहा था जिससे स्पष्ट हो जाता है कि यद्यपि भारतीय जीवन अपने दुर्दिन देख रहा था, तो भी वह नितान्त निष्प्राण नहीं हो गया था।" ___ सन् १८५७ ई० के विद्रोह के पूर्व भी अनेक सामाजिक एवं सांस्कृतिक आन्दोलन हुए, जिनके फलस्वरूप भारत मे सामाजिक प्रगति की भावना धीरे-धीरे विकसित हुई। इस सामाजिक पुनरुत्थान का बीड़ा सर्वप्रथम राजा राममोहन राय ने सन् १८१५ ई० में ही 'आत्मीय सभा' एवं सन् १८२८ ई० में 'ब्रह्म समाज' की स्थापना द्वारा उठाया । भारतीय जनमानस को सामाजिक पुनर्गठन की नितान्त आवश्यकता का सर्वाधिक बोध कराने का श्रेय आर्यसमाज को है। स्वामी दयानन्द ने बाल-विवाह, बहु-विवाह तथा अस्पृश्यता का विरोध किया एवं भारतीय समाज को नई दृष्टि प्रदान की। उन्होने समाज का ध्यान नये मूल्यो की ओर आकृष्ट किया। इस दृष्टि से श्रीसुरेन्द्र नाथ बनर्जी द्वारा सामाजिक सुधार के लिए किये गये प्रयत्न भी महत्त्वपूर्ण हैं । उन्होने भारतीय रूढिवादी समाज मे नई चेतना की लहर फैला दी और इस कार्य के लिए कई संस्थाओ की स्थापना द्वारा देश-भर मे अन्तरजातीय विवाह, मादकद्रव्य-निपेध और रात्रि-पाठशालाओं का प्रचार किया। सन् १८८५ ई० मे भारतीय कांगरेस की स्थापना से भी सामाजिक सुधारों को बल मिला और समाज की अनेक रूढियों के उन्मूलन के लिए प्रयत्न होने लगे। इन सुधारवादी आन्दोलनों के प्रेरणा के स्रोतों की ओर संकेत करते हुए डॉ० रवीन्द्रसहाय वर्मा ने लिखा है : "इन सामाजिक आन्दोलनों की प्रेरणा पश्चिम से ही आई, पर साथ में यह कहना भी ठीक है कि इन आन्दोलनों की प्रगति अँगरेजी प्रभाव के प्रसार के साथ-साथ हुई।"२ भारतीय समाज पर आंग्ल-प्रभाव का यह एक उपकार सामने आया कि एक सर्वथा नई सामाजिक चेतना का विकास हुआ और रूढिग्रस्त परम्परा का परित्याग आवश्यक प्रतीत होने लगा था। सामाजिक परिवर्तन की इन्ही परिस्थितियों के मध्य सम्पूर्ण द्विवेदी-युग भी घिरा था। राजनीतिक अराजकता की ही भॉति जनजीवन में सामाजिक खोखलेपन के विरुद्ध भी आवाज उठी। उन्नीसवी शती के अन्त में ब्रह्मसमाज एवं आर्यसमाज ने जिन क्रान्तिकारी भावनाओं तथा पुनरुत्थानवाद को जन्म दिया था, इस काल में उसे बल मिला। इसके फलस्वरूप नये-नये सामाजिक मूल्य १. डॉ० लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय : 'उन्नीसवीं शताब्दी', पृ० ४ । २. डॉ० रवीन्द्रसहाय वर्माः 'हिन्दी-काव्य पर आंग्ल प्रभाव', पृ० ६६ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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