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________________ १६२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व भी प्राचीन एवं अर्वाचीन सभी कवियों के दोष दिखाने के लिए द्विवेदीजी ने अपने ऊपर पड़े आग्ल प्रभाव को स्वीकारा है । दोष दिखाने का यह कार्य उन्हें अँगरेजी-शिक्षा से प्राप्त ज्ञान से ही ज्ञात हुआ था ।१ परन्तु उनकी इस दोष दर्शन की प्रवृत्ति ने बहुत लोगों को अप्रसन्न कर दिया । 'कालिदास की निरकुशता' नामक पुस्तक पर तो अनेक लोगों ने क्षोभ प्रकट किया, यद्यपि उसकी भूमिका में द्विवेदीजी ने लिख दिया था : " पाठक, विश्वास कीजिए, यह लेख हम कालिदास के दोष दिखाकर उनमे आपकी श्रद्धा कम करने के इरादे से नहीं लिख रहे है । ऐसा करना हम घोर पाप समझते है, भारी कृतघ्नता समझते हैं । इसे आप वाग्विलास समझिए । यह केवल आपका मनोरंजन करने के लिए है । इतना करने पर भी जब लोगों ने रुष्टता प्रकट की, तब द्विवेदीजी ने अपने 'प्राचीन कवियों में दोषोद्भावना' शीर्षक लेख में लिखा था : " 'कालिदास की निरंकुशता' नामक लेख मे जिन दोषों का उल्लेख हुआ है, उनमें से दो-चार को छोड़कर शेष सब दोषों को संस्कृत के साहित्यशास्त्र - प्रणेताओं ने स्वीकार किया है । जो बाते इन महात्माओ ने पहले ही लिख रखी है, उन्हीं का निदर्शन कराना भी यदि हिन्दी मे मना हो, तो उसके साहित्य से समालोचना का बहिष्कार ही कर देना चाहिए ।"3 4 इस प्रकार, द्विवेदीजी ने अपनी प्रारम्भिक आलोचनाओं मे दोषदर्शन अथवा खंडनात्मकता को महत्त्व दिया । इस प्रवृत्ति को उनकी परवर्त्ती आलोचनाओं में afras प्राश्रय नही मिला। फिर भी, जहाँ कही उन्हे किसी भी पुस्तक में अवगुण दीखते थे, उनकी ओर संकेत करना वे नहीं भूलते थे । द्विवेदीजी की दोष पर्यवेक्षणशैली से ग्रस्त उनकी सभी आलोचनाओं को डॉ० उदयभानु सिंह ने 'संहारात्मक समीक्षा' की संज्ञा दी है और लिखा है : " उनकी संहारात्मक समीक्षाओं ने लेखकों को सावधान करके, भाषा को सुव्यवस्थित करके हिन्दी साहित्य की ईदृक्ता और इयत्ता को उन्नत करने की भूमा प्रस्तुत की, साहित्यिक जगत् में जागृति उत्पन्न की, जिसके फलस्वरूप आगे चलकर माननीय ठोस ग्रन्थों की रचना हो सकी। "४ दोष-दर्शन से भरपूर समीक्षाओं से ऊपर उठने पर द्विवेदीजी नीर-क्षीरविवेक आलोचक का बाना धारण कर लिया । उन्होंने पक्षपात रहित भाव से रचनाओ १. विशेषतः द्रष्टव्य : डॉ० रामचन्द्र प्रसाद : 'हिन्दी - आलोचना पर पाश्चात्त्य प्रभाव', पटना- विश्वविद्यालय की डी० लिट्० उपाधि के लिए स्वीकृत शोध प्रबन्ध | २. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'कालिदास की निरंकुशता', पृ० २ । ३. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'आलोचनांजलि', पृ० ४३ । ४. डॉ० उदयभानुसिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग', पृ० १६२ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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