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________________ ९२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एव कर्तृत्व से इन तीनों युगो का अंत काव्यक्षेत्र में हो गया था। कविता अरक्षिना-सी होकर आत्महत्या की दशा तक पहुंच गई है । कविता का युग बीत गया है, उसका गंगाजल मे विलीन हो जाने का उद्यम करना चरम लीला का सूचक है। इस प्रकार, आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी द्वारा कल्पित इन सभी व्यग्य-चित्रों के माध्यम से जिन समस्याओं एवं विचारो को प्रस्तुत किया गया है, भले ही आज वे अनावश्यक प्रतीत हो, परन्तु द्विवेदीयुग मे उनकी उपदेयता नि सन्दिग्ध थी। द्विवेदीजी ने जिस भॉति अपनी साहित्यसाधना को कई प्रयोगो से समन्वित किया, उसी प्रकार व्यंग्य-चित्रो की यह योजना भी उनके लिए प्रयोग ही थी। पता नहीं क्यो, सन् १९०३ ई० के बाद 'सरस्वती' में व्यग्य-चित्रो को उन्होंने स्थान नहीं दिया। सम्भव है. उन्हे वर्ष भर मे इन्ही चित्रों का अपेक्षित प्रभाव एव तजनित सुधार इस नीमा तक दीख पडा हो कि वे इनकी और अधिक आवश्यकता ही नही समझते हो। सामान्य पाठको के लिए इन व्यग्यप्रधान नित्रो मे कोई आकर्षण नहीं था। डा० माहेश्वरीप्रसाद सिंह 'महेश' ने लिखा है: ___इस प्रकार के व्यंग्य-चित्र पाठको को अच्छे नहीं लगे, परन्तु द्विवेदीजी उनके द्वारा हिन्दी-साहित्य का कल्याण करना चाहते थे।"१ ___और, पाठको की रुचि को ध्यान में रखकर द्विवेदीजी को 'सरस्वती' के व्यंग्यचित्रों का स्तम्भ 'साहिन्य-सनाचार' समाप्त करना पड़ा। वास्तव मे, सम्पादक के रूप में वे अपने पाठकों की रुचि का सर्वाधिक ध्यान रखते थे। 'सरस्वती' का कौन-सा रूप, कौन-सा स्तम्भ पाठको को अधिक पसन्द आयगा,इसी आधार पर उन्होंने इस पत्रिका का रूप-शृगार अपने सम्पादन-काल में किया था। इस प्रकार, आचार्य द्विवेदीजी ने अपने को एक सफल सम्पादक सिद्ध किया और 'सरस्वती' पर अपनी छाप लगा दी। उनके द्वारा सम्पादित मनोहारिणी पत्रिका 'सरस्वती' ने समस्त हिन्दी-साहित्य पर अपनी छाप लगा दी। हिन्दी-जगत् में नये-नये विषयों का उपस्थापन : 'सरस्वती' के माध्यम से द्विवेदीजी ने हिन्दी का बहुविध विकास किया। इसको विभिन्न विषयों से पूर्ण करने के लिए उन्होने 'सरस्वती' के विविध विषयों से सुशोभित होने की घोषणा द्विवेदीजी के सम्पादक बनने के पूर्व ही पत्रिका के पहले अंक मे ही की गई थी। यथा : "और, इस पत्रिका मे कौन-कौन-से विषय रहेगे, यह केवल इसी से अनुमान करना चाहिए कि इसका नाम 'सरस्वती' है। इसमें गद्य, पद्य, काव्य, नाटक, उपन्यास चम्पू, इतिहास, जीवनचरित्र, पत्न, हास्य, परिहास, कौतुक, पुरावृत्त, शिल्प, कलाकौशल १. डॉ० लक्ष्मीनारायण सुधांशु : 'हिन्दी-साहित्य का बृहत् इतिहास', भाम १३, पृ० १९.।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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