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________________ सम्पादन-कला एव भाषा-सुधार [ ८९ चित्रगुप्त : (पार्षट की ओर देखकर) अरुणक ! यह संवाद जो मैंने अभी दर्ज रजिस्टर किया, उसकी यह नकल तबतक प्रयाग की 'सरस्वती' मे छपने के लिए तुम फौरन दे आओ। अरुणक : जो आज्ञा, महाराज ! (जाता है।) यह सवाद मनोरजक होने के साथ-साथ कई सुझावो से भी भरा हुआ है। प्रसंग से जान पड़ता है कि दो वर्ष का चन्दा 'सरस्वती' का पूरा होने के पूर्व ही 'सरस्वती' के लेखक की प्रतिष्ठा पर ध्यान नही दिया गया और पत्रिका वी० पी० से भेज दी गई और वह भी पण्डित अथवा श्री तथा वंशनाम के बिना ही पता लिखकर । इसी भूल की ओर सकेत करने के लिए उक्त संवाद को द्विवेदीजी ने प्रस्तुत किया था। 'चित्रगुप्त की रिपोर्ट' में चित्र से अधिक संवाद का महत्त्व है। बाद मे सन् १९०२ ई० में द्विवेदीजी ने 'साहित्य-समाचार' शीर्षक एक स्तम्भ ही व्यंग्य-चित्रों के लिए 'सरस्वती' में प्रारम्भ करवा दिया। इन चित्रो की कल्पना द्विवेदीजी के मन मे ही उत्पन्न हुई। कल्पित चार व्यंग्य-चित्र सन् १९०२ ई० की 'सरस्वती' में उनके द्वारा इस प्रकार प्रकाशित हुए थे : १. मराठी-साहित्य, अँगरेजी-साहित्य, बंगला-साहित्य, पृ० ३५ । २. हिन्दी-साहित्य, पृ० ३६ । ३. प्राचीन कविता, पृ० ९९ । ४. प्राचीन कविता का अर्वाचीन अवतार, पृ० १०० । इनमें प्रत्येक में द्विवेदीजी की कल्पना का चमत्कार दीखता है । संस्कृत के आचार्यों ने साहित्य-वधू की कल्पना की थी, आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने साहित्य-पुरुष की कल्पना की है। पहले चित्र में क्रमश मराठी, अँगरेजी और बंगाली वेशभूषा में सजे तीन पुरुषों का अंकन हुआ है, किसी की पगड़ी गायब है, किसी का कोट नदारद है, तो किसी का दुपट्टा गायब है। यह चित्र उस समय के उन हिन्दी-सेवको पर व्यंग्य है, जो हिन्दी-सेवा के नाम पर मराठी, अंगरेजी और बॅगला की छाया प्रस्तुत करते थे। इसी साहित्यिक चोरी की ओर दूसरे चित्र 'हिन्दी-साहित्य' में भी संकेत किया गया है। हिन्दी-साहित्य को पुरुष-वेश धारण किये इस चित्र मे दिखाया गया है-अंगरेजी कोट है, कन्धे पर बंगाली दुपट्टा और सिर पर मराठी पगड़ी है । सन् १९०२ ई० में ही 'प्राचीन कविता' नामक चित्र भी छपा। इसमें प्राचीन कविता को स्त्रीवेश में खूब शृगार कर बैठे बाँसुरी बजाते हुए दिखाया गया है। पॉच रसिक उसकी ओर मुग्धभाव से देख भी रहे है। इस चित्र के माध्यम से शृगार-प्रधान प्राचीन कविता की कोमलकान्त पदावली-रूपी बॉसुरो की तान पर रसिक दरबारी लोगों को मुग्ध करने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है। परन्तु, 'प्राचीन कविता का अर्वाचीन अवतार' शीर्षक चित्र में कविता का भयानक नारी-रूप दिखलाया गया है। घोर विलासिता
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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