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________________ ७६ बाणसे बींधडालता था जैसा कि पाटनारायणके लेखमें उसके विषय में लिखा मिलता है । इस मंदाकिनी के तटके निकट सिरोही के महाराव मानसिंहका मन्दिर है जो एक परमार राजपूत के हाथसे आबूपर मारेगये और यहांपर दग्ध किये गये थे । यह शिवमन्दिर उनकी माता धारबाइने वि० सं० १६३४ ( ई० स० १५७७) में बनवाया था इसमें मानसिंहकी मूर्ति पांच राणियों सहित शिवकी आराधना करती हुई खडी है । ये पांचो राणियां उनके साथ सती हुई होंगी । इस मन्दिरसे थोडी दूरपर शांतिनाथका जैनमन्दिर है इसको जैनलोग गुजरातके सोलंकी राजा कुमारपालका बनवाया हुआ बतलाते हैं । इसमें तीन मूर्तियां हैं जिनमें से एकपर वि० सं० १३०२ ( ई० स० १२४५ ) का लेख है । अचलेश्वर मन्दिरसे थोडी दूर जानेपर अचलगढके पहाडके ऊपर चढनेका मार्ग है इस पहाडपर गढ बना हुआ है जिसको अचलगढ कहते हैं । गणेशपोलके पाससे यहांकी चढ़ाई शुरू होती है, मार्गमें लक्ष्मीनारायणका मन्दिर और उसके आगे फिर कुंथुनाथका जैनमन्दिर आता है जिसमें उक्त तीर्थंकरकी पीतलकी मूर्ति है जो वि० सं० १५२७ ( ई० स० १४७० ) में बनी थी | यहांपर एक पुरानी धर्मशाला तथा महाजनोंके थोडेसे घर भी हैं। यहांसे फिर ऊपर चढनेपर पहाडके शिखरके निकट वडी धर्मशाला तथा पार्श्व तीर्थकल्पमें कुमारपालका आवुपर एक जिनमंदिर बनवाना लिखा है ।
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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