SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ गुजरातके सोलंकियों और आबूके परमारोंका वृत्तान्त तथा वस्तुपाल तेजपालके वंशका विस्तृत वर्णन पढनेमें आ सकता है जिससे अनुमान होता है कि तेजपालने इस मन्दिरका जीर्णोद्धार करवाया हो अथवा यहांपर कुछ बनवाया हो । वस्तुपाल तेजपालने जैन होनेपरभी कई शिवालयोंका उद्धार करवाया था जिसका उल्लेख मिलता है । मन्दिरके पासही मठमें एक बड़ी शिलापर मेवाडके महारावल समरसिंहका वि० सं० १३४३ (इ० स० १२८६) का लेख है जिसमें वापा रावलसे लगाकर समरसिंह तक मेवाडके राजाओंकी वंशावली तथा उनका कुछ वृत्तान्तभी है । इस लेखसे पाया जाता है कि समरसिंहने यहांके मठाधिपति भावशंकरकी जो वडा तपस्वी था आज्ञासे इस मठका जीर्णोद्धार करवाया अचलेश्वरके मन्दिरपर सुवर्णका दंड (ध्वजदंड) चढाया और यहांपर रहनेवाले तपस्वियोंके भोजनकी व्यवस्था की थी। तीसरा लेख चौहान महाराव लुभाका वि० सं० १३७७ - (ई० स० १३२०) का मन्दिरके बाहर एक ताकमे लगाहुआ है जिसमें चौहानोंकी वंशावली तथा महाराव लुभाने आबूका प्रदेश तथा चन्द्रावतीको विजयं किया जिसका उल्लेख है । मन्दिरके पीछेकी वावडीमें महाराव तेजसिंहके समयका वि० सं० १३८७ (ई० स. १३२१ ) माघसुदि ३ का लेख है । मन्दिरके सामने पीतलका बना हुआ विशाल नन्दि है जिसकी चौकीपर वि० सं० १४६४ (ई० स० १४०७) चैत्र सुदि ८ का लेख है। नन्दिके पासही प्रसिद्ध चारण कवि दुरसा आढाकी बनवाईहुई उसीकी
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy