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________________ ६८ खते हैं कि हिन्दुस्तान भरमें यह मन्दिर सर्वोत्तम है और ताजमहल के सिवाय कोई दूसरा स्थान इसकी समानता नहीं करसकता इसके पासही लूणवसही नामक नेमिनाथका मन्दिर है जिसको लोग वस्तुपाल तेजपालेका मन्दिर कहते हैं, यह मन्दिर प्रसिद्ध मत्री वस्तुपालके छोटे भाई तेजपालने अपने पुत्र लूणसिंह तथा अपनी स्त्री अनुपम देवीके कल्याण के निमित्त करोडों रुपये लगाकर वि० सं० १२८७ ( ई० स० १२३१ ) में बनवाया था. यही एक दूसरा मन्दिर है जो कारीगरी में उपरोक्त विमलशाह के मन्दिरकी समता करसकता है इसके विषय में भारतीय शिल्प सम्बन्ध विषयों के प्रसिद्ध लेखक फर्मेसन साहब ने अपनी पिकचरस इलस्टेशन्स आफ एन्ट आकिटेक वर इन् हिन्दुस्तान नामकी पुस्तक में लिखा है कि इस मन्दिर में जो संगमर्मरका बना हुआ है अत्यन्त परिश्रम सहन करनेवाली हिन्दुओंकी टांकीसे फीते जैसी बारीकीके साथ ऐसी मनोहर आकृतियां बनाई गई हैं कि उनकी नकल कागज पर बनाने को कितनेही समय तथा परिश्रमसेभी मैं शक्तिवान् नहीं हो सकता यहांके गुंबज की कारी १ वस्तुपाल और उसका भाई तेजपाल – गुजरातकी राजधानी अणहिल्लवाडे ( पाटण ) के रहनेवाले महाजन अश्वराज ( आसराज ) के पुत्र और गुजरात के धोलका प्रदेशके सोलकी ( बघेल ) राणा वीरधवलके मंत्री थे, जैन धर्मस्थानोकेळानमित्त उनके समान द्रव्य खर्च करनेवाला दूसरा कोई पुरुष नहीं हुआ. २ यहाके शिलालेखमें वि० सं० १२८७ दिया है परंतु तीर्थ कल्प में १२८८ लिखा है.
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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