SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरमें निवेदन किया गया कि-"आपके चरणोपासक आपश्रीजीकी आज्ञा पालन करनेको तयार हैं आप शीघ्र पधारें, आपश्रीजीके वगैर हम कुछ नहीं कर सक्ते, मुहूर्त्तका निर्णय आपश्रीजीके पधारने पर ही होगा" ___ करुणासागर सूरिजी चिट्ठी वांचकर तुरतही धोलके पधारे, मुहूर्त्तका निश्चय करके देशदेशान्तर पत्र लिखेगये। लाखों मनुष्य इकट्ठे हुए। शुभलग्नमें श्रीसंघ रवाना हुआ । संघमे नागेन्द्रगच्छके आचार्य विजयसेनसूरिजीने आगे होकर सर्व क्रिया कराई । सूरिमंत्रके स्मरणपूर्वक संघपतियोंके मस्तक पर वासक्षेप किया। ___ संघमे ३६००० मुख्य श्रावक थे, उनको सोनेके तिलक दियेगये । नयचन्द्रसूरिजीकी देशनासे श्रीसंघका उत्साह और भी बढा। श्रीसंघके पडाव हलके और अनुकूल रखेगये । संघमे हाथी दान्तक २४ रथ मौजूद थे । २००० लकडेके रथ थे। ५०००० गाडे थे । १८०० घोडागाडियें थीं। जो जो संघपति साथमे थे, जिन्होने पहले संघ काढे हुए थे उनके मस्तक पर छत्र धारण किये जाते थे । ऐसे छत्रपति संघवियोंकी संख्या १९०० थी। तीन हजार ३००० ऐसे मनुष्य थे कि जिनको चामर
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy