SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्य अस्त हो चुका था, लडाई बंद होगई । वस्तुपालने कुश• लपूर्वक अपने स्वामीको अश्वारूढकर अपने तंबुमे पहुंचाया। रातको उपचार करनेपर राजा नीरोग होगया। __ इधर भीमसिंहके सुभटोंमें परस्पर खटपट जागी, इसलिये भीमदेवके मंत्रीजनने उसे यह ही सलाह दी कि-वस्तुपालमंत्री बुद्धिका खजाना है वह किसीभी तरह आपका पराजय करेगा, इतनी सलाह हो रही थी इतनेमें उधरसे खबर मिली कि-चीरधवल तो अच्छा भला चौपटकी बाजी खेल रहा है, यह सुनकर सबको निश्चय हुआ कि इनके पास सर्वप्रकारकी सामग्री पूरी है और हमारे सुभटोंमें फूट है इसवास्ते सुलह करलेनीही अच्छी है। ___ शरत लिखीगई कि-"भीमसिंह अपने राज्यसे सन्तोष मनालेवें । आजसे लेकर हमारी कचहरीमे अपने दूतको भेजकर अपनी प्रशंसा सुनाकर हमे न सतावें । हमभी इन्हे न सतावेंगे" बस दोनो तर्फके मंत्रिलोगोंके दस्तखत होगये । और वीरधवल सपरिवार गुजरात चला आया । मगर वीरधवलको इस बातकी बडी चोट लगी कि मैंने अपने शरणमे आये हुए सुभटोंका तिरस्कार क्यों किया? परन्तु उपाय क्या होसकता था ? आखीर "गतं न शोचामि" कहकर मंत्रियोंने उनके दुःखको भुला दिया। __ पहले कहा जा चुका है कि-भीमसिंहके सुभटोंमें परस्पर कुसंप फेलगया था। उसका परिणाम यह हुआ कि जालोरी सुभटोंकी चेकदरी हुई, वस फिर कहनाही क्या था? "अपमाने न तिष्ठन्ति सिंहाः सत्पुरुपा गजाः ।"
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy