SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३ भला किसकी ताकात थी कि इनकी आज्ञाको न मानता है, कुछ खास खास राज्य हितचिन्तकोंकी मरजीसे मंत्री वस्तुपालने उसको पकडकर कैद किया, और अन्त्यमे १९०० अशरफियां दंड लेकर छोडदिया । इस बनावसे वह बहुत कुछ उछलना कूदना चाहता था परन्तु - "यस्य पुण्यं चलं तस्य " तपते हुए मध्याह्नके सूर्यके सामने नजर टिकाने की शक्ति किसकी थी ? । " शिष्टस्य पालनम् " इस वाक्यको उन्होंने सोमेश्वर भहमें चरितार्थ किया था । सोमेश्वर- वीरधवल के गृहस्थगुरु ब्राह्मण थे वस्तुपालतेजपाल राजाके हितचिन्तक - सच्चे सलाहकार, प्रजाके एकान्त हितवत्सल, थे, इसवास्ते सोमेश्वर उनपर फिदा फिदा हुआ हुआ था | थोडेसे अन्तरके धर्मभेदके खटकेकोभी महामंत्रियोंने अपनी मध्यस्थवृत्ति से दूर कर दिया था । वस सोमेश्वर और दोनो मंत्रियोंने संसारमे त्रिमूर्त्तिरूपको धारण कर लिया था । ॥ दिग्विजय ॥ वस्तुपालके बाप दादा इसी कामको करते आए थे कि जिसपर आज इनका अधिकार था, इसलिये राज्यके कार्यों को सिर्फ दोही नहीं किन्तु हजार नेत्रोंसे देखनेका हजारों कानोंसे सुननेका उनका फर्ज था । जब उन्होने देखा कि खजानेमेही बहुत कमी है तो उनको एक चिन्ता उत्पन्न हुई, उन्होने सोचा कि - "कोष एव महीशानां परमं बलमुच्यते " धनसंपत्तिके लाभका उपाय
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy