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________________ "" ३६ कार्यों में कुशल था वैसाही धर्मकार्यों में भी पूरा निपुण आस्तिक देवगुरुभक्त आचारपरायण था । आसराज के समानकालीन आबु इस नामके एक प्रधान मंत्री थे, यह जैनसंघके आधारभूत प्रजावत्सल और राज्यधुराधुरंधर होकर धर्मार्थकाम भी सतत अविरोधी थे । जगत में प्रसिद्ध है कि “जहां पानी होता है वहां गौएं स्वयमेव चली आती हैं" पाटणमें अनेक श्रद्धालु लोगोंकी श्रद्धाके मेरे हुए अनेक धर्मोपदेष्टा आचार्य जगत् वत्सल आकर भव्यात्माओं की धर्मभावनाओंको सफल किया करते थे, आज हरिभद्रसूरि महाराज शहरमें पधारे हैं । उनके आगमनसमय अनेक सन्मानसूचक धर्मोत्सव किये गये हैं । राज्य और प्रजा तर्फसें उनका पूरा सत्कार कियागया है । कुछ दिनोंकी उनकी स्थितिसें पाटणके समस्त समाजपर उन महात्माओंका बडा प्रभाव पडा है । क्यों न पडे ? जिन्होंने संसारके उपकार के लिये अपने सकल जीवनको अर्पण कर दिया है । जो शत्रु और मित्रको समान देखकर उपकृत करते हैं, परमार्थसाधनही जिनका सत्यजीवन है, उन दिव्य एवं अलौकिक उत्तम व्यक्तियोंका प्रभाव देव-देवेन्द्र चक्रवर्त्तियों पर भी जरूर पडता है तो मनुयोंकी तो कथाही क्या ? | सुबहका वक्त है, समय अत्यन्त शान्त है । सूरिजी महाराजके सहज शान्त और निर्मल हृदयमें अनेक धार्मिक विचारमालाओंका संचालन हो रहा है ।
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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