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________________ ६ कि, ब्राह्मणमंत्री मेरे लडके के लिये मनमें आवे वैसा अधिक और अनुचित बोलते हैं, आज तो उस बातका अनुभव भी होगया है । मनमें ही कुछ ऊहापोह करके उसने निश्चय किया कि लडका जहांतक लायक उमर न हो जाय वहांतक यहां न रहकर अपने पिता के घरपर चलाजाना और वहां रहकर इस भाविकालके कुलाधार पुत्रकी रक्षा करनी उचित है । यह विचार उसने अपने पुत्रकोभी कह सुनाया, और जब मां बेटा दोनों इस कार्य में सहमत होगये तो फौरन बिलकुल थोडे समय में घरकी तमाम व्यवस्था करके अपनी मालमिलकत साथ लेकर उन्होने पाटणको छोड दिया । वीरमती के पितृपक्षकी स्थिति साधारण थी, पाटण के थोडेही फांसलेपर एक सामान्य गाममे वह रहते थे, गामकी रीतिमूजब व्यापार वाणिज्य करके अपना गुजरान चलाते थे । वीरमती पहलेसें अपने गुजारेकी सामग्री साथही लेकर गईथी, इसलिये वहां रहनेमें उनको किसी प्रकारकी तकलीफ मालूम नहीं दी, और नाही उनके भाई वगैरेह को कुछ कष्टभी मालूम दिया । विमलकुमारका मनोहररूप उस गामके लोगोंको, उसमें भी खासकर स्त्रियोंको वडाही मोहक था इसलिये कितनेक प्रसंग कुमारको विकट भी आ जाते परन्तु कुमारका पिता दीक्षाग्रहण करता हुआ पुत्रको कहगया था कि, बेटा ! अन्याय से बचना । इसलिये अव्वल तो कुमार किसीके घर जाताही नहीं था, अगर कहीं कदाचित् जानाभी पडता तो अपनी मर्यादाकों वोह अपना जीवन समझता था ।
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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