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________________ ११४ अन्वयेन विनयेन विद्यया विक्रमेण सुकृतक्रमेण च । क्वापि कोऽपि न पुमानुपैति मे वस्तुपालसदृशो दृशोः पथि ॥ अर्थात् वंश, विनय, विद्या, विक्रम और पुण्यके संबंधमें वस्तुपालकी बराबरी करनेवाला कोई नहीं । वस्तुपालकी पत्नी ललितादेवी और पुत्र जैत्रसिंहकीभी प्रशंसामें कितनीही उक्तियां हैं । इसीतरह उसके भाई तेजपालकाभी खूब गुणगान किया गया है। मारवाड़में मेड़तानामक नगरसे १४ मीलपर एक गांव है-केकिन्द । वहां पार्श्वनाथके मंदिरमें जो शिलालेख है उसमें राष्टकट अर्थात राठौडवंशके कितनेही राजाओंका वर्णन है । यथा-मालदेव, उदयसिंह और सूरसिंह । यह सब मरुदेशहीके नरेश थे। उदयसिंहके विपयमें लिखा हैराज्ञां समेपामयमेव वृद्धो वाच्यस्तदन्यैरथ वृद्धराजः । यस्येति शाहिविरुदं स दद्यादकब्बरो बब्बरवंशहंसः ॥१२॥ __ अर्थात् वावरवंशके राजहंस अकबरने यह आज्ञा दी कि उदयसिंहको लोग वृद्धराज कहा करें, क्योंकि वे सब नरेशोंमें वयोवृद्ध हैं । उदयसिंहके बेटे सूरसिंहकी तारीफ़राज्यश्रियां भाजनमिद्धधामा प्रतापनन्दीकृतचण्डधामा । सपतनागावलिनाशसिंहः पृथ्वीपती राजति सूरसिंहः ॥१४॥
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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