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________________ "गुजरात मंडलमें चौलुक्य कुलोत्पन्न महामंडलेश्वर "राणक श्रीलवणप्रसाददेव सुत महामंडलेश्वर राणक "श्रीवीरधवल के समस्त मुद्रा व्यापार करनेवाले (महामंत्री) "अणहिल्लपुर पाटणके निवासि पोरवाड़ ज्ञातीय-ठ. श्रीचंडप "सुत-ठ. श्रीचंडप्रसाद पुत्र महं० सोमपुत्र. ठ. श्रीआस"राज और उनकी धर्मपत्नी ठ. श्रीकुमारदेवीके पुत्र और "संघपति महं० श्रीवस्तुपालके छोटेभाई महं० श्रीतेजपालने "अपनी भार्या अनुपमादेवीकी कुक्षिसे अवतरे हुए पुत्र "महं० श्रीलूणसिंहके पुण्य और यशकी वृद्धिके लिये "आबुपर्वतपर देलवाडा गाममें समस्त देव कुलिकालंकृत "और हस्तिशालाओंसे सुशोभित-"लूणसिंहवसहिका" "नामसे यह नेमिनाथ स्वामिका मंदिर बनवाया है । __ "नागेन्द्र गच्छके आचार्य महेन्द्रसरिजीकी शिष्य संततिमें "आचार्य श्रीशान्तिसरिजीके शिष्य आनन्दसूरिजीके शिष्य "श्रीअमरचंद्रसूरिजीके पट्टधर श्रीहरिभद्रसूरिजीके शिष्य "श्री"विजयसेन सूरिजीने इस मंदिरकी प्रतिष्ठा की है। इस धर्मस्थानकी व्यवस्था और रक्षाके लिये जो जो धर्मात्मा श्रावक नियत किये गये थे उनके नाम नीचे लिखे जाते हैं। महं० श्रीमल्लदेव, महं० श्रीवस्तुपाल, महं० श्रीतेजपाल, भाइयोंकी संतान और महं० श्रीलूणसिंहके मोसाल (नानके) के सर्वजनोंका, चंद्रावती नगरीके (पोरवाड ओसवाल १ वस्तुपालका छोटाभाई।
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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