SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस घटनामें हमें एक प्राचीन पुष्ट प्रमाण मिलता है, वह यह है कि पट्टावलियोंसे जाना जाता है कि,-"विक्रम संवत् ९९४ में उद्योतन सूरिजी महाराज पूर्व देशसे विहार करते हुए श्री "अर्बुदाचल" आबु तीर्थकी यात्रा करनेके लिये राज पूताना मारवाडमें आये" इस कथनसे विमलशाके होनेसे पहले आबू तीर्थपर जैनोंका यात्रार्थ आना सिद्ध होता है । "विमलवसति" नामक मंदिर दंडनायक विमलने आचार्य श्रीवर्धमानसूरिजीके उपदेशसे बनवाया था. इसकी प्रतिष्टा वि. संवत् १०८८ में उसी आचार्यके हाथसे हुईथी । इस मंदिरके तयार होनेमे १८५३००००० रुपये खर्च हुए थे। जिनप्रभसूरिजीने अपने बनाये तीर्थकल्पमें लिखा है किमुसलमानोंने इन दोनों मंदिरोंको तोड़ डाला था इसलिये वि. संवत् १३७८ में महणसिंहके पुत्र लल्लने और धनसिंहके पुत्र वीजडने विमलवसति का उद्धार कराया था। वैसेही लूणगवसति का उद्धार व्यापारी चंडसिंहके पुत्रने कराया था। एक बात और भी खास ध्यानमें रखने जैसी है कि-जिन जिन महापुरुषोंने यह मंदिर बनवाये हैं वह खुद सर्व प्रकारके सत्ताधारी थे । उनके हाथमें राज्य और प्रजाकी डोरी थी। वह खुद बडे दीर्घदशी थे । इसलिये उन्होंने घरके क्रोडों रुपये खर्च करके मंदिर बनवाये थे । लाखों रुपये खर्च करके श्रीसंघको बुलाया था और प्रतिष्ठा करवाई थी। परंतु दूरंदेशीके खयालसे उनके सदाके निर्वाहके लिये
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy