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________________ 614 प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र क्षणस्थायी किस तरह हो सकते हैं ? यदि सव पदार्थों को अनित्य-सदा न रहने वाले--मानते हैं, तो सौंपी हुई धरोहर का वापस माँगना, पहली बात की याद करना और अभिज्ञान करना, ये सब किस तरह हो सकते हैं ? अगर जन्म होनेके पीछे क्षणभर में ही नाश हो जाय, तो दूसरे क्षण में हुआ पुत्र पहले के माता-पिता का पुत्र नहीं कहलावेगा और पुत्र के पहले क्षण में हुए माता-पिता वे माता-पिता न कहलायेंगे। इसलिये वैसा कहना असंगत है। अगर विवाह के समय, पिछले क्षण में, दम्पति क्षणनाशवन्त हों, तो उस स्त्री का वह पति नहीं और उस पति की वह स्त्री नहीं ऐसा होय यह कहना अनुचित है। एक क्षण में जो अशुभ कर्म करे, वही दूसरे क्षण में उसका फल न भोगे और उसको दूसरा ही भोगे ; तो इससे किये हुए का नाश और न किये हुए का आगम या प्राप्ति-ये दो बड़े दोष होते हैं।" इसके बाद महामति मंत्री बोला- यह सब माया है; वास्तव में कुछ भी नहीं। ये सब पदार्थ जो दिखाई देते हैं, स्वप्न और मृगतृष्णा के समान मिथ्या हैं। गुरु-शिष्य, पिता-पुत्र, धर्म-अधर्म और अपना-पराया ये सब व्यवहार से देखने में आते हैं, लेकिन वास्तव में कुछ भी नहीं है। जो इस लोक के सुख को छोड़ कर परलोक के लिये दौड़ते हैं, वे उस स्यार की तरह, जो अपने लाये हुए मांस को नदी-तीर पर छोड़ कर, मछली के लिए पानी में दौड़ा; मछली पानी में चली गई और
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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