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________________ प्रथम पर्व ५९ आदिनाथ चरित्र को विषय-भोगों में लगाकर ज़िन्दगी बसर करने और गुलछर्रे reit वाले विरोध करें, हमारे अच्छे काम में विघ्न-बाधा उपस्थित करें; लेकिन हमको तो स्वामी के हित की बात कहनी ही चाहिये | क्या हिरनों के डर से कोई खेत में अनाज बोना बन्द कर देता है ? स्वामी के सच्चे शुभचिन्तक सेवक को विरोधियों के भय और हजारों आपदाओं की सम्भावना होने पर भी, अपने पवित्र कर्त्तव्य या फर्ज के अदा करने में आनाकानी न करनी चाहिए। स्वयंबुद्ध मंत्री ने, जो सारे बुद्धिमानों में अग्रणी या अगुआ था, इस प्रकार विचार कर और अञ्जलिवद्ध होकर अर्थात् हाथ जोड़ कर राजा से कहा स्वयं बुद्ध मंत्री का सदुपदेश । "हे राजन् ! यह संसार समुद्र के समान है। नदियों के जल से जिस तरह समुद्र की तृप्ति नहीं होती; समुद्र के जल से जिस तरह बड़वानल की तृप्ति नहीं होती; प्राणियों से जिस तरह यमराज की तृप्ति नहीं होती; काष्ठ-समूह से जिस तृप्ति नहीं होती; उसी तरह, इस जगत् में, किसी दशा में भी आत्मा की तृप्ति नहीं होती। विषयों को भोगता है, त्यों त्यों उसकी उनके भोगने की इच्छा और भी बलवती होती है। नदी किनारे की छाया, दुर्जन, विषय और सर्पादिक विषधर प्राणी, अत्यन्त सेवन करनेसे, विपत्ति के कारण ही होते हैं । सारांश यह कि, ये जितने ही अधिक सेवन तरह अग्नि की विषय-सुखों से, प्राणी ज्यों-ज्यों
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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