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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व रूपी रत्तमें रोहणाचल पर्वत के समान और सम्यग्दृष्टि स्वयंबुद्धमंत्री, उस समय, इस प्रकार विचार करने लगा: ܘ स्वयं बुद्धमंत्री की स्वामिभक्ति । I इस बात को जान "अहो ! हमारे देखते देखते विषयासक्त हमारे स्वामी का, दुष्ट अश्वों की तरह, इन्द्रियों द्वारा हरण हो रहा है : अर्थात् दुष्ट घोड़े जिस तरह अपने रथी को कुराहों में ले जाकर नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं; उसी तरह दुष्ट इन्द्रियाँ हमारे विषयों में फँसे हुए स्वामी का सत्यानाश कर रही हैं ! हम सब लोग देख रहे हैं, पर कुछ करते - धरते नहीं । क्या यह शर्म की बात नहीं है ? इसकी उपेक्षा करने वाले, हम लोगों को धिक्कार है ! विषय - विनोद में लगे हुए हमारे स्वामी का जन्म व्यर्थ जा रहा है, कर, मेरा मन उसी तरह तड़फता और छटपटाता है, जिस तरह कि अल्प जलनें मछली तड़फती और छटपटाती है । अगर हमारे जैसे मंत्रियों से भी कुमार उच्च पदको प्राप्त न हो, कुराह को त्यागकर सुराह पर न आवे, विषयों को विषवत् न त्यागे, तो हम में और मसख़रों में क्या तफावत होगा ? इसलिए स्वामी से अनुनय-विनय करके उन्हें हितमार्ग पर लाना चाहिए । नम्रतापूर्वक विषय-भोगों की बुराइयाँ समझा-बुझाकर उन्हें कुराह से हटाकर सुराह पर लाना चाहिये। क्योंकि राजा लोग, सारणी की तरह, जिधर प्रधान या मंत्रीगण ले जाते हैं, उधरही जाते हैं। सम्भव है, स्वामी के व्यसनों से जीवन निर्वाह करने वाले, स्वामी
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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