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________________ - - ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ · आदिनाथ-चरित्र ५२६ प्रथम पव ___ उस शत्रुञ्जय-पर्वत पर भरत राजाने मेरु-पर्वतकी चूलिकाकी राबबरीका दावा करनेवाला एक रत्न-शिलामय चैत्य बनवाया और जैसे अन्त:करणमें चेतना विराजती है, वैसेही उसके मध्य में पुण्डरीकजीके साथ-ही-साथ भगवान ऋषभस्वामीकी प्रतिमा स्थापित करवायी। भगगन ऋषभदेवजीकी भिन्न-भिन्न देशोंमें विहार कर, अन्धे. को आँख देनेकी तरह भव्य प्राणियोंको बोधिबीज ( समकित) का दान कर अनुगृहीत कर रहे थे। केवल-ज्ञान प्राप्त हानेके बादसे. प्रभुके परिवारमें चौरासी हज़ार साधु, तीन लाख साध्वियों, तीन. लाख पचास हजार श्रावक, पाँच लाख चौवन हज़ार श्राविकाएं चार हज़ार सात सौ पचास चौदह पूर्वी, नौ हज़ार अवधि-ज्ञानी, बीस हज़ार केवलज्ञानी और छः सौ वैक्रिय लब्धिवाले, बारह हज़ार छः सौ मन:पर्यव ज्ञानो, इतने ही वादी और बाईस हज़ार अनुतर बिमानवासी महात्मा हुए। उन्होंने व्यवहार में जैसे प्र-- जाका स्थापन किया था, वैसेही आदि-तीर्थङ्कर होनेपर उन्होंने धर्म-मार्गमें चतुर्विध संघका स्थापन किया। दीक्षाके समयसे लेकर लक्ष पूर्व बीत जाने पर उन्होंने जाना, कि अब मेरा मोक्षकाल समोप आ गया है, तब महात्मा प्रभु झटपट अष्टापद पर्वत पर आ पधारे। पास पहुंचने पर प्रभु मोक्षरूपी महलकी सीढ़ियोंके समान उस पर्वत पर अपने परिवार के साथ चढ़ने लगे। तब प्रभुने वहाँ दुल हजार मुनियों के साथ चतुर्दश तप (छः उपवास) करके पादपगमन अनशन किया।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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