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________________ प्रथम पये ३७६ आदिनाथ-चरित्र इस तरह नगरके लोगों को सजायी हुई नगरीमें प्रवेश करने की इच्छासे पृथ्वीन्द्र चक्रवर्ती शुभ मुहूर्तमें मेघवत् गर्जना करनेवाले हाथी पर चढ़े। आकाश जिस तरह चन्द्रमण्डलसे शोभता है; उसी तरह कपूरके चूर्ण जैसे सफेद छत्रोंसे वे शोभते थे। दो चँवरोंके मिषसे, अपने शरीरोंको छोटा बनाकर, आई हुई गंगा और सिन्धने उनकी सेवा की हो, ऐसा मालूम होता था। स्फटिक पर्वतोंकी शिलाओं में से सार लेकर बनाये हों, ऐसे उज्वल, अति सूक्ष्म, कोमल और घन-ठोस कपड़ोंसे वे शोभते थे, मानों रत्नप्रभा पृथ्वीने प्रेमसे अपना सार अर्पण किया हो, ऐसे विचित्र रत्नालङ्कारोंसे उनके सारे अंग अलंकृत थे। फणों पर मणिको धारण करनेवाले नागकुमार देवोंसे घिरे हुए नागराजकी तरह, वे माणिक्यमय मुकुटवाले राजाओंसे घिरे हुए थे। जिस तरह चारण देवराज इन्द्रके गुणोंका कीर्तन करते हैं ; उसी तरह जय जय शब्द बोलकर आनन्दकारी चारण और भाट उनके अद्भुत गुणोंका कीर्तन करते थे और मंगल बाजे प्रति शब्दके मिषसे, ओकाश भी उनकी मंगल ध्वनि करता हुआ सा जान पड़ता था । इन्द्रके समान तेजस्वी और पराक्रमके भण्डार महाराज चलनेके लिए गजेन्द्रको प्रेरणा कर आगे चलने लगे। मानों स्वर्गसे उतरे हों अथवा पृथ्वी में से निकले हों; इस तरह बहुत समयके बाद आनेवाले राजाके दर्शन करनेकी इच्छासे दूसरे गांवोंसे भी आदमी आये थे। महाराजकी सारी सेना और दर्शनार्थ आये हुए लोग
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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