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________________ आदिनाथ चरित्र ૩૭૮ प्रथम पवं राह-वाट में केशरके जलसे छिड़काव करने लगे । मानों निधियाँ अनेक रूपसे आगे हो आगई हों, इस तरह मंच सोनेके खम्भोंसे बनवाने लगे । उत्तर कुरु देशमें पांच नदियोंके दोनों ओर रहने वाले दश दश सुवर्णगिरि शोभते हैं, इसी तरह राहकी दोनों ओर आमने-सामने के मंच शोभने लगे। प्रत्येक मंचमें बाँधे हुए रत्नमय तोरण इन्द्रधनुष की श्रेणीकी शोभाका पराभव करने लगे और aani सेना विमानोंमें बैठती हों, इस तरह गानेवाली स्त्रियाँ मृदंग और वीण बजानेवाले गन्धवों के साथ, उन मंचों पर बैठने लगीं। उन मंचोंके ऊपरके चन्दवोंके साथ बँधी हुई मोतियोंकी झालरें लक्ष्मीके निवास गृहकी तरह कान्तिसे दिशाओं को प्रकाशित करने लगीं। मानो प्रमोदको प्राप्त हुई नगरदेवीका हास्य हो इस तरह चँवरोंसे, स्वर्गमण्डनकी रचना के चित्रोंसे कौतुकसे आये हुए नक्षत्र - तारे हों ऐसे दर्पणोंसे, खेचरोंके हाथोंके रूमाल हों ऐसे वस्त्रोंसे और लक्ष्मीकी मेखला विचित्र मणिमालाओंसे नगरके लोग ऊँचे किये हुए खम्भों में हारकी शोभा करने लगे । लोगों द्वारा बाँधी हुई घुंघरुओं वालो पताकायें, सारस पक्षीके मधुर शब्द वाले शरद् ऋतुके समय को बताने लगी। व्यापारी लोग हरेक दूकान और मन्दिरों को यक्ष कर्दमके गोबर से लीपने लगे और उनके आंगनों में मोतियोंके साथिये पूरने लगे । जगह-जगह अगरके चूर्णकी धूपका धूआँ ऊँचा उठ रहा था, इससे ऐसा जान पड़ता था, गोया स्वर्गको भी धूपित करने की इच्छा करते हैं ।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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