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________________ www ----- आदिनाथ-चरित्र ३७६ प्रथम पर्व लमस्त जगतसे इकट्ठे किये हों ऐसे चौरासी लाख घोड़ों, उतने ही रथो और पृथ्वीको ढक देने वाले छियानवे करोड़ योद्धा. ओंसे घिरे हुए भरत चक्रवर्ती रवानः होनेके पहले दिनसे साठ हज़ारवें बरस चक्रके मार्गको अनुसरण करते हुए अयोध्या की ओर चले। इसका खुलासा यह हैं, कि महाराज जब अयोध्याको चले, तब नवनिधियोंसे भरे भण्डार, चौदह रत्न, बत्तीस हजार राजकन्यायें, अन्य बत्तीस हजार सुन्दरी स्त्रियाँ, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख रथ और छियानवे करोड़ योद्धा और बत्तीस हज़ार सामन्त राजा--- ये सब उनके साथ थे। वे प्रयाणके दिनसे ६० हजारवें वर्ष फिर अयोध्याको वापस लौटे। रास्तेमें चलते हुए चक्रवत्ती, सेनासे उड़ी हुई धूलके स्पर्श से मलिन हुए खेचरोंको पृथ्वी पर लेटाये हों ऐसा कर देते थे; पृथ्वीके मध्य भागमें रहने वाले भवनपति और व्यन्तरोंकोसेनाके भारसे-पृथ्वीके फट पड़नेकी आशङ्कासे भयभीत कर देते थे; गोकुलमें विकस्वर दृष्टिवाली गोपाहुनाओंका माखन रूप अयं अमूल्य हो इस तरह भक्तिसे ग्रहण करते थे। वन-वनमें हाथियोंके कुम्भस्थलमें से पैदा हुए मोतियोंकी भीलोंद्वारा दी हुई भेंटको ग्रहण करते थे, पर्वत-पर्वतके राजाओं द्वारा आगे रखे हुए रत्न और सोनेकी खानोंके महत् सार को अनेक बार स्वीकार करते थे। मानों गाँव-गाँवमें उत्कण्ठित बान्धव हों, ऐसे गांवके बड़े बूढ़ोंके नज़राने प्रसन्नतासे
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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