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________________ प्रथम पवे आदिनाथ-चरित्र घट जाय, पर हम कभी भी क्षयको प्राप्त नहीं होती। हममें कमी नहीं आती!" यह कह कर सारी निधियाँ-नौऊ निधियाँ महाराजके अधीन हो गई। इसके बाद विकार-रहित राजाने पारणा किया, और वहीं उनका अष्टाह्निका उत्सव किया। महाराजकी आज्ञासे सुषेण सेनापति भी गंगाके दक्खिन निस्कूट को, छोटे भीलोंके गाँवकी तरह, लीलामात्रमें जीतकर आ गया। पूर्वापर समुद्रको लीलासे आक्रान्त करके रहनेवाला मानों दूसरा वैताढ्य पर्वत हो, इस तरह महाराज भी वहाँ बहुत समय तक रहे। अयोध्याकी ओर प्रयाण एक दिन सारे भारत क्षेत्रको साधन करने वाला भरत. पतिका चक्र अयोध्याकी ओर चला। महाराज भी स्नान कर, कपड़े पहन, बलिकर्म प्रायश्चित्त और कौतुक मंगल कर इन्द्रके समान गजेन्द्र पर सवार हुए। कल्पवृक्ष ही हों ऐसी नवनिधियोंसे पुष्ट भण्डार वाले, सुमंगलाके चौदह स्वप्नोंके अलग अलग फल हों ऐसे चौदह रत्नोंसे निरन्तर युक्त, राजाओंकी कुल-लक्ष्मी जैसी, जिन्होंने कभी सूरज भी आँखोंसे नहीं देखा, ऐसी अपनी व्याहता बत्तीस हज़ार राजकन्याओं सहित मानों अप्सरा हों ऐसी बत्तीस हज़ार देशोंसे व्याही हुई अन्य बत्तीस हज़ार सुन्दरी स्त्रियोंसे सुशोभित, सामन्त जैसे अपने आश्रित बत्तीस हजार राजाओं तथा विन्ध्याचल जैसे चौरासी लाख हाथियोंसे विराजित और मानों
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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