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________________ .... आदिनाथ-चरित्र ३५६ प्रथम पर्व उसे म्यानसे बाहर निकाल रखा था, इसलिये वह कांपली से निकले हुए सर्प जैसा दिखाई देता था। उस पर तेज़ धार थी और वह दूसरे वज्रकी तरह मजबूत और अजीब या। विचित्र कमलोंकी पंक्ति जैसे साफ अक्षरोंसे वह शोभता था। इस खडके धारण करने से वह सेनापति पंख वाले गरुड़ और कबचधारी केशरी सिंह सा दीखने लगा। आकाशमें चमकने वाली बिजली की सी चपलतासे खड्डको फिराते हुए उसने रणक्षेत्रमें घोड़ेको हाँका। जलकान्त मणि जिस तरह जलको जुदा करती है ; उसी तरह शत्रु सेनाको काई की तरह फाड़ता हुआ वह सेनापति रणभूमि में दाखिल हुआ। जब सुषेण ने शत्रु ओं को मारना आरम्भ किया, तब कितने ही शत्रु तो हिरनों की तरह डर गये; कितने ही पृथ्वी पर पड़े हुए खरगोश की तरह आँखे बन्द करके वहीं बैठ गये। कितने ही रोहित की तरह दुखित होकर वहीं खड़े रहे ; कितने बादरों की तरह दरख्तों पर चढ़ गये; वृक्षों की पत्तियों की तरह कितनों ही के हथियार गिर गये ; यशकी तरह कितनों ही के छत्र गिर पड़े; मन्त्र से वश किये हुए सर्पकी तरह कितनों ही के घोड़े निश्चल या अचल होगये और मिट्टीके बने हुओं की तरह कितनों ही के रथ टूट गये। अनजानों की तरह कोई किसी की राह देखने को खड़ा न रहा। सब म्लेच्छ अपने-अपने प्राण लेकर जहाँ जिसके सींग समाये भाग गया। जलके प्रवाह से जिस
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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