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________________ प्रथम पर्व ३५५ आदिनाथ चरित्र हाथों से उसका आलिङ्गन किया हो. ऐसा दीखता था । उसके ऊपर सोने के घुंघरूओं की मालायें मधुर स्वर से छम-छम करती श्रीं, इसलिये मानो भौंरोंके मधुर स्वर वाली कमलों की मालाओं से चर्चित किया हुआसा वहदीखता था । पाँच रंगकी मणियों से, मिश्र सुवर्णालङ्कार की किरणों से अद्वैत रूप की पताकाके चिह्न से अंकित हुआ सा उसका मुख था । मङ्गल गुह से अंकित, आकाश के समान सोनेके कमल का उसका तिलक था और धारणा किये हुए चमरों के आभूषणों से - मानो उसके दूसरा कान हो ऐसा दीखता था। चक्रवर्ती के पुण्य से प्राप्त हुए इन्द्र के उच्चैःश्रवा की तरह वह शोभायमान था । टेढ़े पाँव रखनेसे उसके पाँव लीला से पड़ते से दीखते थे। दूसरी मूर्त्तिसे मानो गरुड़ हो अथवा मूर्तिमान् पवन हो, ऐसा वह एक क्षणमें सौ योजन अथवा आठ सौ मील उलाँघ जानेका पराक्रम दिखलाता था । कीचड़, जल, पत्थर, कंकड़ और खड्डोंसे विषम वन जंगल और पर्वत गुहा आदि दुर्गम स्थानोंको पार करने में वह समर्थ था । चलते समय उसके पाँव ज़मीन को ज़रा ज़रा ही छूते थे । वह बुद्धिमान और नर्म था । पाँच प्रकारकी गति से उसने श्रम -या थकानको जीत लिया था कमलके जैसी उसके श्वासकी सुगन्ध थी। ऐसे घोड़े पर बैठ कर सेनापतिने यमराजकी तरह, मानो शत्रुओंका पन्ना हो ऐसा खङ्गरत ग्रहण किया । वह खङ्ग पचास अंगुल लम्बा, सोलह अंगुल चौड़ा और आधा अंगुल मोटा था और सोने तथा रत्नोंका उसका म्यान था । उसने ।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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