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________________ प्रथम पर्व ३३७ आदिनाथ-चरित्र I 1 श्वरको अर्पण किया उसके साथही अपने मूर्त्तिमान तेज- जेसे कड़े कौंधनी, मुकुट, हार तथा अन्यान्य द्रव्य चक्रवर्ती को भेंट किये उसे आश्वासन देने के लिए राजी करने के लिए उसकी दिलशिकनीका ख़याल करके महाराजने भेटके समस्त द्रव्य ले लिये क्योंकि भेट लेना स्वामीकी कृपा का पहला चिह्न है । क्यारीमें जिस तरह वृक्षको स्थापन करते हैं, उसी तरह उसे वहाँ स्थापन करके – मुकर्रर करके शत्रुनाशन महाराज अपने कटक में पधारे । कल्पवृक्षके समान गृहिरन द्वारा लाये गये दिव्य भोजनोंसे उन्होंने अष्टमभक्त का पारणा किया और प्रभास देवका अष्टान्हिका उत्सव किया क्योंकि पहली बार तो सामन्त जैसे राजाकीभी सत्वृति करनी उचित है। ; 1 --- सिन्धु देवि प्रभृति को साधना । जिस तरह दीपकके पीछे-पीछे प्रकाश चलता है: उसी तरह चक्र के पीछे पीछे चलने वाले चक्रवर्त्ती महाराज, समुद्रके दक्खन किनारे के नजदीक, सिन्धनदीके किनारे पर आ पहुँचे। उसके किनारे किनारे पूर्वाभिमुख चलकर सिन्धदेवी के सदन के समीप उन्होंने पड़ाव डाला । वहाँ अपने मनमें सिन्धुदेवी का स्मरण कर उन्होंने अष्टमतप किया 1 इससे, वायुसे ताड़ित लहरोंकी तरह सिन्धुदेवी का आसन चलायमान हुआ । अवधिज्ञान से चक्रवर्त्ती को आये हुए समझ, उत्तमोत्तम दिव्य बस्तुएँ भेट में देने के लिये लेकर, उनके सम्मानार्थ वह
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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