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________________ प्रथम पर्व 'आदिनाथ-चरित्र जिस तरह चन्द्रमा को देखकर समुद्र बढ़ता है ; उसी तरह जिस से स्याद्वाद मत बढ़ा, वह अभिनन्दन भगवान् सब को पूर्णतया सुखी और आनन्दित करें! खुलासा-चन्द्रमा की तरह ® स्याद्वाद मत रूपी समन्दर को उल्लसित करने वाले अभिनन्दन भगवान सब लोगों को पूर्ण रूप से सुखी करें। द्यसकिरीटशाणोत्ते जितांघ्रिनखावलिः । भगवान् सुमतिःस्वामी तनोत्वभिमतानिव ॥७॥ ___ जिन के चरणों के नाखून, वन्दना करने वाले देवताओं के मुकटों की नौकों से घिस-घिस कर, सान से घिसकर साफ हो जाने वाले शस्त्र की तरह, साफ होगये हैं, वह सुमतिनाथ भगवान् तुम्हारे मनोरथों को पूर्ण करें। ___ खुलासा-जिन भगवान् सुमतिनाथ के चरण-कमलोंमें देवता लोग अपने मस्तक रगड़ते या नवाते हैं, वे भगवान् तुम्हारी अभिलाषाओंको पूरी करेंतुम जो चाहते हो, वहीं तुम्हें दें। ___ यों भी कह सकते हैं, भगवान् सुमतिनाथ महामहिमान्वित हैं। देवता तक उन के चरण-कमलों में मस्तक झुकाते हैं। इस से प्रतीत होता है, वे ___* समुद्र का स्वभाव है कि, वह चन्द्रमा को दे खकर उल्लसित या खुश होता है । खुश होकर, वह उस के पास जाना चाहता है । देखते हैं, पूर्णमासी के दिन, जब चन्द्रमा अपनी सम्पूर्ण कलाओं से उदय होता है, तब, समुद्र उमगता है, उस को लहरें इतनी ऊँची उठती हैं कि, चन्द्रमा को छ लेना चाहती हैं। -
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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