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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व खुलासा-जिस अजितनाथ स्वामी से संसार उसी तरह सुखी होता है, जिस तरह कमल-वन सूर्य से सुखी या प्रफुल्लित होता है, जिस के ज्ञानरूपी आईने में सारे लोकों-सारी दुनियाओंका प्रतिबिम्ब-अक्स पड़ता है, हम उसी अजित अर्हन्त-अजित नाथ स्वामी की स्तुति करते हैं । विश्वभव्यजनारामकुल्यातुल्या जयन्ति ताः । देशना समये वाचः श्रीसंभवजगत्पतेः ॥५॥ जिस तरह नाली का पानी बागीचे के वृक्षों की तृप्ति करता है ; उसी तरह श्री संभवनाथ स्वामी के उपदेश-समय के वचन समस्त जगत् के प्राणियों की तृप्ति करते हैं। भगवान् के ऐसे वचनों की सर्वत्र जय जयकार हो रही है। खुलासा-जिस तरह नाली के जल से बागीचे के वृक्ष और लतापतादि तृप्त होकर प्रफुल्लित हो जाते हैं, उसी तरह श्री संभवनाथजी महाराज के उपदेश देनेके समयके बचनों को सुनकर, संसार के प्राणी, तृप्त होकर, प्रफुल्लित हो जाते हैं । जिस तरह नाली के जलसे वृक्ष खिल उठते हैं, उनमें चमक-दमक आजाती है, उसी तरह श्री संभवनाथजीके उपदेशामृतको पान करके संसारी प्राणियों के मुरझाये हुए कुन्द दिल खिल उठते हैं, उन के चेहरों पर रौनक आजाती है। उन का भय भग जाता है, चिन्ता दूर हो जाती है। और पाप या दुःख नौ दो ग्यारह होते हैं। स्वामी संभवनाथजीके तृप्तिकारक और शान्तिदायक अमृत समान वचनों की सर्वत्र जय हो रही है । संसारी या भव्य प्राणी उनको बड़ी श्रद्धा भक्तिसे सुनते और उनपर अमल करते हैं। अनेकान्तमताम्भोधि समुल्लासनचन्द्रमाः। दद्यादमन्दमानन्दं भगवानभिनन्दनः ॥६॥
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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