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________________ आदिनाथ-चरित्र १९२ प्रथम पर्व बड़े फार मोतियोंके मणिमय कंकण प्रभुके पहुँचे पर पहनाये। भगवान्की कमरमें वर्षधर पर्वतके नितम्ब भाग पर रहने वाले सुर्वण-कुलके विलासको धारण करने वाले सोनेका कटिसूत्र यानी सोनेकी क्रर्द्धनी पहनायी। और मानो देवताओं और दैत्योंका तेज उनमें लगाहो, ऐसे माणिक्यमय तोड़े प्रभुके दोनों चरणोंमें पहनाये। इद्रने जो जो आभूषण या गहने भगवान्के अंगको अलंकृत करनेके लिए पहनाये, वे आभूषण या ज़ेवर भगवान्के अंगोंसे उल्टे अलंकृत होगये; यानी इन्द्रने गहने तो पहनाये थे, प्रभुके अंगोंके सजानेको; लेकिन उल्टे वे प्रभुके अंगोंसे सज उठे । गहनोंसे भगवानके अङ्गोंकी शोभावृद्धि होनेके बजाय उल्टी गहनोंकी शोभा बढ़ गई। पीछे भक्तियुक्त चित वाले इन्द्रने प्रफुल्लित पारिजातके फूलोंको मालासे प्रभुकी पूजाकी और पीछे मानो कृतार्थ हुआ हो इस तरह ज़रा पीछे हट कर प्रभुके सामने खड़ा हो, जगत्पतिकी आरती करने के लिए आरती ग्रहणकी। जाज्वल्यमान् कान्तिवाली उस आरती से,प्रकाशित औषधि वाले शिखरसे, जिस तरह महागिरि शोभित होता है; उसी तरह इन्द्र शोभित होने लगा ।श्रद्धालु देवताओंने जिसमें फूल बखेरे थे, वह आरती इन्द्र ने प्रभु पर से तीन बार उतारी। पीछे भक्ति से रोमाञ्चित हो, शक्रस्तवसे वन्दना कर; इन्द्रने इस प्रकार प्रभुकी स्तुति करनी आरम्भ कीः__“ हे जगन्नाथ ! त्रैलोक्य कमल मार्तण्ड ! हे संसार-मरुस्थल में कल्पवृक्ष ! हे विश्वोद्धारण बान्धव ! मैं आपको नमस्कार
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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