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________________ आदिनाथ चरित्र १६० प्रथम पर्व सौधर्मेन्द्रकी प्रभु-भक्ति । बड़े भाईके पीछे दूसरे सहोदरों की तरह, अन्य बासठ इन्द्रों ने भी उसी तरह स्नात्र और विलेपनसे भगवान् की पूजाकी । पीछे सुधर्म इन्द्र की तरह ईशान इन्द्रने अपने पाँचों रूप बनाये । उनमें से एक रूपसे भगवान को गोद में लिया, एक रूपसे मोतियोंकी झालरें लटकानेसे मानो दिशाओंकों नाच करनेका आदेश करता हो, इस तरह कपूर जैसा सफेद छत्र प्रभुके ऊपर धारण किया। मानो खुशी से नाचते हों इस तरह हाथोंको विक्षेप करके दोनों रूपसे प्रभुके दोनों तरफ चँवर ढोरने लगा और एक रूपसे मानो अपने तई प्रभुके दृष्टिपात से पवित्र करनेकी इच्छा रखता हो, इस तरह हाथमें त्रिशूल लेकर प्रभुके आगे खड़ा हो गया । 1 इसके बाद सौधर्मकल्पके इन्द्रने जगत्पतिके चारों ओर स्फटिक मणिके चार बैल बनाये । ऊँचे ऊँचे सीगों वाले वे चारो बैल दिशाओंमें रहने वाले चन्द्रकान्त मणिके चार कीड़ा पर्वत हों, इस तरह शोभने लगे । मानों पाताल फोड़ा हो, इस तरह उन बैलों के आठों सींगोंसे आकाशमें जल-धारा चलने लगी । मूलमेंसे अलग-अलग निकली हुई, पर अन्त में जा मिली हुई वे जलधारायें, नदी के संगमका विभ्रम कराने लगीं। देवता और असुरों की स्त्रियाँ द्वारा कौतुकसे देखी हुई वे जलधारायें नदियोंके समुद्र में गिरने की तरह प्रभु पर गिरने लगीं । जलयंत्रके जैसे उन सींगों में से निकलते हुए जलसे इन्द्रने तीर्थङ्करको स्नान कराया । जिस तरह भक्तिसे
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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