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________________ आदिनाथ- -चरित्र १७८ प्रथम पर्व वासी देवताओंके साथ अपने विमल नामक विमानमें बैठकर आया और आरणाच्युत देवलोकका इन्द्रभी तीन सौ विमानवासी देवताओके साथ, अपने अति वेगवान सर्वतोभद्र नामक विमानमें बैठकर आया । उस समय रत्नप्रभा पृथ्वीकी मोटी तहमें निवास करने वाले भुवनपति और व्यन्तरके इन्द्रोंके आसन काँप उठे । चमरच्चानाम की नगरी में सुधर्मा सभाके अन्दर चमर नामक सिंहासनपर, चमरासुर - चमरेन्द्र बैठा हुआ था । उसने अवधिज्ञानसे भगवानके जन्मका समाचार जानकर सम्पूर्ण देवताओंको सूचित करने के लिए, अपने द्रुम नामके सेनापतिले औधघोषा नामकी घण्टी बजवाई। इसके बाद अपने ६४ हजार सामानिक देवों, ३३ त्रयत्रि शक गुरुस्थानीय देवों, चार लोक पाल, पाँच अग्र महिषी या पटरानी, अभ्यन्तर-मध्य - बाह्य तीन परिषदोंके देव, सात प्रकारकी सेना, सात सेनाधिपति और चारों दिशाओंके ६४ हज़ार आत्मरक्षक देव तथा अन्य उत्तम ऋद्धिवाले असुर कुमार देवोंसे घिरा हुआ, आभियोगिक देवके तत्काल रचे हुए, ४००० मील ऊँचे, दीर्घ ध्वजासे सुशोभित और चार लाख मीलके विस्तार वाले विमानमें बैठकर भगवान्का जन्मोत्सव मनानेकी इच्छासे चला । वह चमरेन्द्रभी शक न्द्रकी तरह अपने विमानको हमें छोटा करके, भगवान् के आगमनसे पवित्र हुई मेरु पर्वत की चोटी पर आया । बलि चंचा नामकी नगरीका बलि नामका इन्द्रभी, महौघस्वराध नामका घण्टा बजवाकर महाद्रुम नामके
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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