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________________ प्रथम पर्व १६७ आदिनाथ-चरित्र होगये और 'यह क्या होता है' ऐसे सभ्रममें पड़कर सावधान होने और चैतन्य लाभ करने लगे। इस तरह सावधान हुए देवोंको उद्दश करके, इन्द्र के सेनापतिने, मेघवत वाणीसे इस प्रकार कहा- 'हे देवताओ ! जिस इन्द्रका शासन अनुलंध्य है, जिस सुरपतिकी आज्ञाके विरुद्ध कोई भी चलनेका साहस कर नहीं सकता; जिन देवराजके हुक्म के खिलाफ कोईभी चूँ नहीं कर सकता, जिस स्वर्गाधिपतिके आदेशके विपरीत चलनेकी किसीमें भी क्षमता और सामर्थ्य नहीं, वही वृत्तारि देवाधिपति इन्द्र आपलोगोको देवी प्रभृति परि वार सहित आज्ञा देते हैं, कि जम्बू द्वीपके दक्षिणार्द्ध भरतखण्डके मध्य भागमें, कुलकर नाभिराजके कुलमें, आदि तीर्थङ्कर भगवान ने जन्म लिया है। उन्हीं भगवानके जन्म-कल्याणका महोत्सव मनानेके लिए हम लोग वहाँ जाना चाहते हैं । आप लोग भी सपरिवार वहाँ चलनेके लिए शीघ्र शीघ्र तैयार होकर हमारे पास आजाय; इस शुभकाममें विलम्ब न करें; क्योंकि इससे उत्तम शुभ कार्य और नहीं है।' इस आज्ञाके सुनतेही अनेक देवता तो भगवान्की भक्ति और प्रीतिसे खिंचकर वायुके सन्मुख वेगसे जाने वाले हिरनकी तरह, चल खड़े हुए। कितनेही, चकमकसे आकर्षित होने वाले लोहेकी तरह, इन्द्रकी आज्ञासे आकर्षित होकर या खिंचकर रवाना होगये। कितने ही, नदियों के वेगसे दौड़नेवाले जल-जीवोंकी तरह,अपनी अपनी घरवालियों के उत्साहित और उल्लसित करने एवं ज़ोर देनेसे चल पड़े और
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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