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________________ आदिनाथ-चरित्र १६६ प्रथम पर्व जिस तरह नदी का प्रवाह हो, उसी तरह इस भरतक्षेत्रमें लोगोंके पुण्यसे आपने अवतार लिया है। सौधर्मेन्द्र का देवताओंको आदिनाथ भगवान् के जन्मकी खबर देना। भगवान्के चरण मलोंमें जानेकी तैयारी । इस तरह देवलोकके इन्द्रने पहले भगवानकी स्तुति की और पीछे अपने सेनाधिपति नैगमिषी नामक देवको आज्ञा दी - “हे सेनापति ! जम्बूद्वीपके दक्षिणाद्ध-स्थित भरतक्षेत्रके मध्य-भूमि भागमें, लक्ष्मीके निधि रूप, नाभिकुलकरकी पत्नी मरुदेवाके पेटसे, प्रथम तीर्थङ्गरने पुत्र रूपसे जन्म लिया है । अतः उनके जन्मस्नात्रके लिए सब देवताओंको बुलाओ।” इन्द्रकी ऐसी आज्ञा नुनकर, उसने चौदह कोसके विस्तार और अद्भुत आवाज़वाली सुघोषा नामकी घण्टी तीन बार बजाई। मुख्य गाने वालेके पीछे जिस तरह और गवैये गाते हैं ; उसी तरह सुधोषा घण्टी की आवाज़ होने पर दूसरे सब विभानोंकी घण्टियाँभी उसके साथ-साथ बजने लगी। कुलपुत्रोंसे जिस तरह उत्तम कुलकी वृद्धि होती है, उसी तरह उन सब घण्टियोंकी आवाज़ दिशाओं-विदिशाओंमें गूंज-गूज कर बढ़ गई। देवता लोग प्रमादमें आसक्त थे बत्तीस लाख विमानो में वह शब्द तालवाकी भाँति अनुरणन रुप से बढ़ गया । देवता लोग प्रमादमें आसक्त थे, गफलतमें पड़े हुए थे, घण्टियाँकी घोर ध्वनि सुनकर मूर्छित और बेहोश
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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