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________________ आदिनाथ चरित्र १०८ प्रथम पर्व सत्पुरुष सर्वत्र दयासे ही काम लेते हैं। इस के बाद, जीवानन्द ने, अमृतरस-समान प्राणी को जिलानेवाले, गोशीर्ष चन्दन का लेप करके मुनि की आश्वासना की । इस तरह पहले चमड़े के भीतर के कीड़े निकले। तब उन्हों ने फिर तेल की मालिश की । उस से उदानवायु से जिस तरह रस निकलता है, उस तरह मांस के भीतर के बहुत से कीड़े निकल पड़े। तब, पहले की तरह फिर रत्न - कम्बल उढ़ाया गया। इसबार जिस तरह दो तीन दिन के दही के कीड़े अलता के ऊपर तिर आते हैं; उसी तरह कीड़े उस कम्बल पर तिर आये। उन्होंने वे फिर मरी हुई गाय पर डाल दिये । अहो ! कैसा उस वैद्य का बुद्धि-कौशल था । उसने कमाल किया। पीछे, मेघ जिस तरह गरमी से पीड़ित हाथी को शान्त करता है; उन्हों ने उसी तरह गोशीर्ष चन्दन के रस की धारा से मुनि को शान्त किया। कुछ देर बाद, उन्होंने तीसरी बार तैल मर्दन किया । उस समय हड्डियों में रहनेवाले कीड़े भी बाहर निकल आये ; क्योंकि बलवान पुरुष हृष्ट-पुष्ट हो तो बज्र के पींजरे में भी नहीं रहता । उन कीड़ों को भी रत्नकम्बल पर चढ़ाकर, उन्होंने उन्हें भी गाय की लाशपर डाल दिया। सच है, नीच को नीच स्थान ही घटता है। पीछे उस वैद्य शिरोमणि ने परम भक्ति से, जिस तरह देवता को विलेपन करते हैं उसी तरह; मुनि के गोशीर्ष चन्दन का लेप किया। इस तरह चिकित्सा करने से मुनि निरोग और नवीन कान्तिमान हो गये और उजाली हुई सोने की मूर्ति की तरह शोभा पाने लगे । अन्त
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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