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________________ आदिनाथ- चरित्र १०६ प्रथम पर्व ही सेठ आश्चर्य चकित हो गया, उस के नेत्र फटे से हो गयेवह हक्का-बक्का होकर देखता रह गया । रोमाञ्च से उस के हृदय के आनन्द का पता लगता था । वह अपने दिल में इस भाँति विचार करने लगा -'अहो ! कहाँ तो इन सब का उन्माद - प्रमाद और कामदेव से भी अधिक मदपूर्ण यौवन और कहाँ इन की वयोवृद्धों के योग्य विवेक पूर्णं मति ? इस उठती जवानी में, इनमें वृद्धों के योग्य विवेक - विचार - पूर्ण मति-गति देखकर विस्मय होता है; मेरे जैसे बुढ़ापे से जर्जर शरीर वाले मनुष्यों के करने योग्य शुभ कामों को ये करते हैं और दमन करने योग्य भार को उठाते हैं।' ऐसा विचार कर वृद्ध वणिक ने कहा - 'हे भद्र पुरुषो ! इस गोशी चन्दन और कम्बलको ले जाइये । आप लोगोंका कल्याण हो ! मूल्य की दरकार नहीं । इन वस्तुओंका धर्मरूपी अक्षय मूल्य मैं लूँगा; क्योंकि आप लोगोंने मुझे सहोदरके समान धर्मकार्य में हिस्सेदार बनाया है ।' यह कह कर उसने दोनों चीजें उन्हें दे दी। इसके बाद, उस भाविक आत्मा वाले श्रेष्ठ सेठने दीक्षा लेकर परम-पद लाभ किया । जीवानन्द वैद्य द्वारा मुनिकी चिकित्सा | अपूर्व और आश्चर्य चमत्कार । आरोग्य लाभ | इस तरह औषधि की सामग्री लेकर, महात्माओं में श्रेष्ट वे
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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