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________________ (४) उच्चार मतकरो, अति तुच्छ चन्द्रगोमि नामके बौद्धाचार्यकृत चान्द्रव्याकरणोसें भी आत्माको कौन कलेशित करे । और भी इस व्याकरणके विषय में एक कविने आचार्य श्रीकी बुद्रिकी स्तुति करनेके लिये योग्य शब्दोके अभावसे व्यङग्य रुपसे प्रकाशित करते संक्षिप्तमें कहते है किं स्तुमः शब्दपाथोघेहेमचन्द्रयतेम॑तिम् ? । एकेनाऽपि हि येनेदकृतं शब्दानुशासनम् ॥ १ ॥ व्याकरणे सम्बन्धमें सम्पूर्ण पाण्डित्यताको प्राप्त करना, पूर्वापरका ख्याल रखना एक मात्राके गौरवको भी अटकानेवाली, बिचारशक्तिको जाहिरमें रखनी। कोइभी वात रहना न पावे तैसे कुल नियमोको योग्य स्थानपर रखने, वैसेही थोडे अक्षरोको जनानेकी असाधारण बुद्भिवलसे सता रखनी इत्यादिक अनेक दुर्घट मुस्केलीओंके कारण व्याकरणका स्वतन्त्र और सम्पूर्ण रचनेका इतना गहन है कि सामान्य मनुष्यकी और बुद्धिमान अकेलेकी तो वातही छोडदो । जो कि पाणिनि कात्यायन और पतंजली जैसे प्रोढ विद्वान् गिने जाते थे तो भी एकही व्याकरणको चाहिए वैसा सम्पूर्ण रुपमें रखनेको समर्थ नहीं हुए है। तो अकेले बिना सहायतासे सिद्ध हैमचन्द्र जैसे वीलकुल निर्दोष स्वतन्त्र और सम्पूर्ण रुपमें रखे हुए व्याकरणको वनाया। शब्दोके समुद्ररुप श्री हेमचन्द्र मुनिकी बुद्रिकी प्रशंसा क्या करें ? अर्थात् हेमचन्द्राचार्यकी अगाध बुद्धिकी प्रशंसा करनेके लिये हमारे पास पुरते शब्दोका घाटा है
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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