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________________ प्रथम पर्व १०३ आदिनाथ - चरित्र साथ बढ़ते हैं, उसी तरह वे चारों बालक एक साथ बढ़ने लगे । हमेशा साथ खेलनेवाले वे बालक - जिस तरह वृक्ष, मेघ के जल को सोख लेता है उसी तरह - सब कला-कलाप को साथ-साथ ही ग्रहण करने लगे । श्रीमती का जीव भी, देवलोक से चव कर, उसी शहर में, ईश्वरदत्त सेठ का केशव नामक पुत्र हुआ । - पाँच करण और छठे अन्तःकरण की तरह, वे छहों मित्र वियोग, रहित हुए | उन में सुविधि वैद्य का पुत्र जीवानन्द, औषधि और रसवीर्य के विपाक से, अपने पिता सम्बन्धी अष्टाङ्ग आयुर्वेदका जानकार हुआ। जिस तरह हाथियों में ऐरावत और नव ग्रहों में सूर्य अग्रगण्य या श्रेष्ठ है; उसी तरह वह बुद्धिमान और निर्दोष विद्यावाला सब वैद्यों में अग्रणी या श्रेष्ठ था । वे छहों मित्र सहोदर भाइयों की तरह एक साथ खेलते और परस्पर एक दूसरे के घर पर इकट्ठे होते थे । एक समय, वैद्य पुत्र जीवानन्द के घर पर वे सब बैठे हुए थे। उसी समय एक साधु भिक्षा उपार्जनार्थ वहाँ आया । वह साधु पृथ्वीपाल राजा का गुणाकर नामक पुत्र था। उसने मल की तरह राज्य को त्याग कर, शम साम्राज्य या चारित्र ग्रहण किया था । ग्रीष्म ऋतु की धूप से जिस तरह नदियाँ सूख जाती हैं, उसी तरह तपश्चर्या के कारण वह सुख-सुखकर काँटे से हो गये थे । अथवा मौसम गरमा की तेज़ धूप के मारे, जिस तरह नदियों में अल्प जल रह जाता है; उसी तरह तप के कारण उन के बदन में भी अल्प रक्त-मांस रह गये थे ! गरमी की नदियों की तरह व कृश-काय हो गये
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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