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________________ प्रथम पर्व ६६ आदिनाथ-चरित्र है; उसी तरह पति में अचला भक्ति रखनेवाली श्रीमती अपने पति के साथ हो ली । आधी राह तय करने पर, अमावस्या की अँधेरी रात में चांदनी का भ्रम कराने वाला, एक घना सरकuster बन उन्हें मिला । राहगीरों के यह कहने पर, कि इस नमें दृष्टिविष सर्प रहता है, उन्होंने उस राह को छोड़कर दूसरी राह पकड़ी; अर्थात् वे दूसरे मार्ग से चले; क्योंकि नीतिज्ञ पुरुष प्रस्तुत अर्थ में ही तत्पर होते हैं । पुण्डरीक की उपमा वाले राजा वज्रजंघ पुण्डरीकिणी नगरी में आये । उनके बल और साहाय्य से पुष्करपाल ने सारे सामन्त अपने आधीन कर लिये । विधि के जानने वाले पुष्करपाल ने, गुरुकी तरह, राजा वज्रसंघ का खूब सत्कार किया । aria और श्रीमती की वापसी । वज्रजंघ को वैराग्य 1 पुत्रद्वारा मारा जाना । दूसरे दिन श्रीमती के भाई की आज्ञा लेकर, लक्ष्मी के साथ जिस तरह लक्ष्मीपति चलते हैं; उसी तरह वज्रजंघ राजा श्रीमती के साथ वहाँ से चला । वह शत्रु नाशन राजा जब सरकंडों के वन के निकट आया, तब मार्ग के कुशल पुरुषों ने उस से कहा, - 'अभी इस वन में दो मुनियोंको केवल ज्ञान हुआ है; अतः, देवताओं के आने के उद्योत से, दृष्टिविष सर्प विषहीन हो गया
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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