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________________ १८ आदिनाथ-चरित्र । प्रथम पर्व चक्रवर्ती ने, समुद्र जिस तरह विष्णु के साथ लक्ष्मी की शादी करता है; उसी तरह अपनी कन्या श्रीमती का पाणिग्रहण उनके साथ कर दिया। इसके बाद चन्द्र और चन्दिका की तरह मिले हुए वे दोनों पति पत्नी, उज्ज्वल रेशमी कपड़े पहन और राजा की आज्ञा ले, लोहार्गलपुर गये। वहाँ सुवर्णजंघ राजा ने पुत्र को योग्य समझ, राजगद्दी पर बिठा, आप दीक्षा ग्रहण की। वज्रजंघ और श्रीमती के पुत्र-जन्म । पुष्करपाल के सामन्तों की बगावत । वज्रजंघ और श्रीमती का सहायतार्थ आगमन । इधर राजा वज्रसेन ने अपने पुत्र पुष्करपाल को राज्यलक्ष्मी सौंपकर दीक्षा अंगीकार की और वह तीर्थङ्कर हुए। अपनी प्यारी श्रीमती के साथ भोग-विलास या ऐश-आराम करते हुए वज्रजंध राजाने ,हाथी जिस तरह कमल को वहन करता है उसी तरह, राज्य को वहन किया। गंगा और सागर की तरह वियोग को प्राप्त न होने वाले और निरन्तर सुख-भोग भोगने वाले उस दम्पति के एक पुत्र पैदा हुआ। इस बीच में, सों की भारी के समान महाक्रोधी, सीमा के सामन्त-राजा पुष्करपाल के विरुद्ध उठ खड़े हुए । सर्प की तरह उन्हें वश में करने के लिए, उसने वज्रजंघ को बुलाया। वह बलवान राजा उसकी मदद के लिए शीघ्र ही चल दिया। इन्द्र के साथ जिस तरह इन्द्राणी चलती
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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