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________________ १३४ पनि पनि पलि पर लि हरती की गज घटा, ती ऊपरि सत सात वह धनक घर साठा उसात सात ओलिपाइक की बइठी, सात ओलिपाक की उठी। बेटा उडन द परफरी डबकी ठाई ठाई ठररी इसी एक स्थाष्ट इडि का दिति यही दिन वातिक निनादि घर आकासि बढ़डड़ी। इसा एक से यातसाह रा कटक बंध अचले सवर ऊपर टूटा, वाटका वड ईवन छूटा, वह का वामी टूटा परत सिरि पैथ लागा, इटे पट मामा सूर सुकै नहीं देइ जागा । इस प्रकार अलदास बीवीरी ववनिका में सर्वत्र क का निर्वाह नहीं मिलता प यवनिका बैली की राजस्थानी भाषा में जैनेत्तर यही सबसे प्राचीन रचना है। इस प्रकार इन वनाओं के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि इनके वस्तु वर्णन, विल्ब, थाली में पाया है।वरना में मैथिली व ख़ुदा है। कता कर्म और क्रिया भी मैथिली के है ठीक इसी प्रकार पृथ्वीचन्द्र चरित के कती, क्रिया कर्म आदि प्राचीन राजस्थानी के है। वर्णन पद्धतियों तीनों रचनाओं की समान है। १. समाप्त किया है। रचनाकार में बीच बीच में चन्द संस्कृत के है मदः कवि का कान्स है।कवि ने विविध पृथ्वी बन्द्र चरित को लेक ने वर्णन की इन्हीं पद्धतियों में ५ उत्लावों में लोक भी दिए है। इसकृति में अनेक स्पष्ट होता है।पूरी रखना बायो वायों के सपनों छोटे से या कलापूर्ण है। कवि की बहुलता देती है परन्तु फिर भी रक्षा मान् को कायात्मक प्रवाह में बाल क्या को वर्ष विति म की परम्परा का सम्यक विकास करती है में लेने पृथ्विका में और दोस्तोक भी दे कि है साकार का मान्य व काव्य प्रयोजनष्ट किया है थीमाथि हरिया वर्ष इदि मद्र परित पवित्र पुरुषाने निर्मित या दिवाकरी या विभन्दा प्राचीन काव्य संग्रह ० १३०१
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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