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________________ नाि एक बार लोके विनवि-स्वामी को एक चोर नगर लइ छ, पुण चोर जागीर नहीं। राजई कहिले थोड़ा बिहाडा मांहि चोर प्रगट करि तुम्ह असामाथि म करिसउ पछई राजा ईतकार लेडी हां कि । तलार कहs पई अनेक उपाय कीधा पुण ते चोर धरार नहीं ।-- प राग आपण पई रानिई नीला पडलउं पहिर नगर बाहर के बोर स्थान के फिरते, चार जोवर एकई स्थान कि जब पूरा लिई में डिक चौरई दी जगाति हिउ तीन किमी भीकारी | मंडिक चोरि कहि मावि क यूँ साधिई जिप तुहई लक्ष्मीवंत करतं । (योब्बा०) बहावर यवनाला वबोध ५ ६ १११ (सं० १५०१) का उदाहरण भी तुलनात्मक इष्टि से यहा प्रस्तुत किया जा रहा है: • वासंति नगरी कीर्तिपाल राज्य मीम बैटउ । राजानइ मित्र सिंह वेष्टि । एक बार इस एक आवी राजा हई बीनवर स्वामी नामपुरि नगरि नागचंद्र राजा तव गुनमाला कन्या । ते तावरी पुत्र हुई। देव बाई प्रसादकर पुत्र मोक्का राजा सिंघ श्रेष्टि नइ कहि।जार कुमरन विवाह महोत्सव करि बाट टि कहई नागपुर ही सो बो इन रहा। जाट राजा कुपित ह ज नहि जार्ज का ईटे पाली पो भय सहस we eray | जो जन उमर जावा नीन खंड हि ममी नहीं तोप की की कई कुन्दर सूरि का नाम उल्लेखनीय है।इनका राजस्थानी में इनकी अनेक टीकार्य की रचना मिलते है विरतर मच्छ के क रचना काल से० १४८७ से १५३० तक है। पध होती है।वाला बोध रचनाओं में प्रकार है: १य में सुरक्षित के समय जैन प्रथायबीकानेर में सुरक्षित |
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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