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________________ २० प्राकृत गाथाओं का विश्लेषण करने के लिए ही इसमें रचनाकार ने उनकी व्याख्या प्रस्तुत की है। योगशस्त्र बालावबोध श्री हेवन्द्रसूरि का लिखा संस्कृत ग्रन्थ है। श्री सोमप्रसूरि ने उसी पर वह बालावबोच लिया है। रचना के नाम से ही स्पष्ट है कि लेखक ने उसमें योग सम्बन्धी तत्वों का विश्लेषण किया होगा । योग की स्थिति, योगी पुत्र व योग के गुण वर्णैन, पंच महाव्रत, आदि के साथ श्रावक के वर्णन, मन का बुद्विधकरण और जान क्या अतिवार और श्रावक गुम, सम्यकरण का विश्लेक्स, इन्द्रियों का उसका स्वरूप, पावनाओं का वर्णन तथा १ के अनुव्रतों का परिचय मिलता है। इन धार्मिक उपाख्यानों की भाषा सरल है। art are की reतासे धर्मगत उपदेशों की सारी दुहता मिट जाती है। इन कथाओं मैं भाषा के विकास के सोपान है। दोनों कृतियों में साहित्यिक तव साधारण है यहां तक कि पड़ावश्यक बालबोध की भाति ये रचनाएं प्रौढ़ नहीं है परन्तु फिर भी मडुव erfor के विकास क्रम में उल्लेखनीय है। दोनों के दूध के कतिषय उद्धरण देखिए: पर्वतक अर्थ राज्य लेणहारमणी एक नंदरानी बेटी ने करी विकल्या जानी नईपणावियो न्युन्त बिना उपचार करतो मारियो । अनt चक पर्वतक राजा भिम कीयो । नई गति वाणस्य स्क्री पालि पुरि गावी नंदराम काही राज्य ली सिम अनेराई आयामी काम परिया पूर्ति निजहुई कई arre वामन दचित्र राज्य बौय भी संगतियो (उप०या०) इसी तरह का वक उदाहरण और वैशि: Y पाटि धनवान कर रही महासती गई इति श्री बार कार की ११० दै भी बेटी इसी प्रकार करई आई भवि मी पाकिटं इस एक बार श्री बर नीम नगर या उचारिया धन सार्थवाह अनेक सुवर्णरत्नमी कोडि या श्री बगर स्वामी कह बाकि वाहिनी बेटी मनी दीक्षा लेव रावी लगाइ पनि लाच
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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