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________________ ८८५ तत्वविचार प्रकरण प्रारम्भिक काल की परवर्ती रचनाओं के अन्तर्गत आने वाली धार्मिक सिद्धान्तों की पोषक गद्य साहित्य की एक बहुत ही र कृति-त्व विचार प्रकरण है। इस कृति का रचना काल सं० 1700 के लगभग है। इसप्रति को प्रकार में लाने का श्रेय श्री अगरबन्द नाहटा को है। लेखक को वकृति भी उन्हीं के सौजन्य से प्राप्त हुई। श्री नाटा को यह स्वना बीकानेर के बड़े ज्ञान भंडार की सूची बनाते हुए अभयसिंह मंडार में जिनप्रम मूरि परम्परा की २० पौं वाली एक प्रति में लिखी हुई मिली। सत्व-विचार इनगन कृतियों में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण रचना है।इसका समय ०४ी शताब्दी निश्चित रूप से होना चाहिए क्योंकि यह रचना जिसमें मिली है का प्रशि १५वीं सताब्दी में लिखी है और इस प्रड में अधि : जिनामसूरि जी तक की ही रचनाएं उपलब्ध होती है जिनका स्का काल १४वीं सनानदी है। बत्व विचार प्रकरण संग्रह की प्रति के ११५ से ११८ पत्राको में लिसी हुई है।इस ग्रह में पी वी वादी की अनेक पदयबध रचनाएं राम, चतुयायिका, दिक्पादिका, पास, दोहक आदि महत्वपूर्ण रबमार मिली। त्य विवार में धर्म के महत्वपूर्ण भोंग प्रान मिलता भावकों के लिए नियम, साधकों के लिए अब प्रथा खा लामा पुन चरित या लोक भादिका वर्णन की माटा बी ने लिखा है कि अब मैं श्रावक के. जीव आदिनी पदार्थ, देव का पुरुष और तोक्य नापि का वर्णन है।" गड्य -विको के बाद इस क्ष के भाषा विषयक अनुदान मात्य पर विचार करना अत्यावश्यक है। नीचे इस शनि के गवार उशन meas - ---- .. रावधान भारती पाम ! - Tera
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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