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________________ ८६८ : विरहमान स्तुति : यह रचना भी जागर विरचित ही है। यह भी बहुत संक्षिप्त है। कवि ने विमान की भांति अनेक जिनेन्द्रों को नमस्कार किया है। भाषा उक्त स्तुति की ही भांति है उदाहरण दृष्टव्य है: जयवंत महंत भवन्त करा, कलिकाल कराल कुमोच हरा सीमंधर ग्रामी मुख जिमा महर्दितु समहि विडि परहेसर कारिय देव हरे अटठोवय व्यय सोड करे freeन्न पमाण सरीर परे परवीसई वेदर तित्थयरे विजय आदि जिदि वरं मिरि नारिहि नेपि तु तित्थयर साया वंद ताम मुंढ जीराउलि पास पन मुंड परहरे व जिजए सुबहा नर निम्बर निम्मिय जन्म महा विहरत र दुरंत पर्या, युवपेसर सत्तरि वेग स इस प्रकार यह स्तुति संस्कृत पद्धति से लिखी गई है। रचना में अप का प्रभाव मिलता है। स्तुति गीतिमय है 1 विनंती विनंती संज्ञक अनेक रचनाएं भी स्तुति की ही मांदि उपलध होती है रचनाएँ भी भक्ति का कै निवेदन करती है। इनका विल्य भी स्तुति की है। रचनाएं निश्व प्रति पाठ धर्म प्रचार और लोकप्रियता के लिए दिदी गई है: ही महावीर वीडी वाद की अज्ञात कवि कृत महावीर के जीवन चरित के योगान के लिए वह रचना लिखी गई है। पूरी वीनती तीन भावों में विभक्त है। रचनाकार जयसागर है। प्रति अभयजैन प्रथालय में सुरक्षित है
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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