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________________ ८४४ की देव ध्वनियों और ईडमि पास के लिए इस पूजा गीत की अभिव्यक्ति देसिए: "कुसुम इदि कि किलिक बमर किनर देव पुणि इस चिंध बैंडहि नियोके ठिउसीहासार्षि' इसी प्रकार अपूर्व प्रवाह और छन्दों के अनुरणम में या पूजा गीत बढ़ता जाता हैजलकारों के स में उपपा, उप्रेया मालोपन, मकान्टाम्ब रयाहरण आदि का सफल वर्णन है। रम्ना सैविच है पर गीतिनवता से प्रोग्रौत है। मन काव्य होने से यह स्तोत्र इर जैन व्यक्ति का के गान बन गया है में कवि परस वाक्य या फलधि के रूप में प्रतिमा से यही माचना करता है कि स्वामी प्रसारित मोह से मुझे बचा। राम मा स्लेड को तोड़ासम्यग वन जान और चरण इन तीन रत्नों से कोचस्पी योद्धा का समूल किाश कर। है सस्थपुर केवीरमारे मन में यदि भाव हो तो अपनी कृपा का प्रसार कर। धनया कहना है कि इस लोक में जो मया वा पुनः नहीं लौटता: • रवि सामि पसरंतु मोह हय वोडहि सम्पर्दस पि नाथु चरनु भह कोड बिहारहि करि पसार मारि बीर बह वह मणि पाबा पाल बार बाहि गबन पाइ.. मीर की मंगल उभाना से गील भाषा पूरे खोर नित्यन्त हवन की अभिव्यक्ति एवं श्री महात्म्य है। रचना का उदेक तीर्थ का महात्म्य मान प्रतिमा की सुसिजो धर्म प्रचार ही का बागा पर उसकी अभिव्यक्ति कवि का वाक्चातुर्य और कौशल है जो इस लोटे से किालीन स्तुति मान की मा दिपक देशा है। रकमा मन बनने कवि बाय बमा बधुरसा बोरप्रसादात्मक्या है। पी रमारम। स निधारण का प्रश्न है, प्रधान रूम में भक्ति main- ram- na बैग साहित्य संशोधक खंड का पद १५॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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