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________________ ८४३ अनेक हिरणों का समूह भी मदोन्मत हाथी का कुछ नहीं कर सकते, उसी प्रकार अनेक तुर्क मिल कर भी सत्यपुर के जिनेन्द्र का कुछ नहीं बिगाड़ सकते ) । स्वाय कवि ने विविध दृष्टान्तों से उक्ति को पुष्ट किया है। प्रस्तुत उत्सा कवि की आवामयी अभिव्यक्ति ( स्पान्टेनस एक्सप्रेशन आफ डे) होने से अत्यन् स्वाभाविक बन पड़ा है। श्रद्धा भक्ति और भावावेश में कवि ने महावीर की महिमा की क्षमता को अनेक उपमानों में बांधा है। जिस प्रकार पहाड़ों में श्रेष्ठ सुमेक, तारागणों में दिवाकर तथा सुरलोक देवताओं में इन्द्र श्रेष्ठ है उसी प्रकार तीनों लोकों में जिनेन्द्र प्रत्यपुरीय श्रेष्ठ है: जिम परंतु गिरवरह मेरु महगह विधायक जिम महंतु सुरवरह मज़िक उवहिहिं रराणाय जिन महंतु सुरवरह कि सुरलोड सुरेश तिम तु वियलोय तिलक सम्बारि जिनेस' (वाद सूरज के प्रकार की भांति उज्जवल ( प्रकाशित), सागर की भांति गंभीर महावीर का अमृत बरसाने वाला प्रतिविम्व तीनों लोगों में अनुपमेय है * तिवणि पडिबिंदु नत्थि जसु उप्पम दिज्जई ऐसे अनुपमेय और अनिर्वचनीय मन्दिर के वर्णन करने को अनेक मुंड और देखने को अनेक नेत्र चाहिए जबकि कवि के पास तो सिर्फ एक ही जीभ व दो मात्र है: ब्रहस्तेन विलोम ferg न हो निर्वह war aes गुण निवि चक्क जts were yes इक्कू जं महनियतपू कि कम सम्बरि वीर इक्काम. प्रतिमा के स्वार्थ अनेकों के क्ों को बावरों, किन्नरों व २ १ १३. बैंक ३. ०२४३ पद ११३ १- वही ० पद १४।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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