SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 878
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उर्मि काव्यों या गीति काव्यों के ममें माविकालीन हिन्दी जैन साहित्य में धार्मिक स्तवन विशाल संख्या में पाये जाते है। धार्मिक पुस्तकों में स्तोत्र और स्ववन आदि का प्राधाना है। लौकिक और धार्षिक दोनों काव्यों में संस्कृत की प्राचीनता पर्याप्त सम में विद्यमान है।समा वैदिक संहितार्य देववानों की विशिष्ट स्तुतिया है। इस प्रकार इन कौकिक, धार्मिक तथा ऐतिहासिक मुक्तक काव्यों की स्या असाधारक है। स्वोत्र साहित्य संस्कृत में बड़े विद्यालपरिमाण में मिलता है। इन स्थलों बस्वोनों में हृदय की स्वाभाविक अभिव्यक्ति, भक्त का दैन्य, तथा साध्य के स्वरुप की क्षमता, कोमलता, दबाता और उदारता का वर्णन किया जाता है। इन देवताओं की महिमा वर्णन में भक्त अपने पक्ष की उदात्त भावनाओं के अभिव्यक्ति में हृदय की समस्त शक्ति लमा देखा है। भगवान का विकास व्य पापों का पब, जीवन बार की भावरता और स्वों का ध्यान उसे न बनाते है और साथ की महानता में साधक अपनी लघुता या उद्रता अनुभव कर स्व को उनमें को देता है। अपने इष्ट साध्य से भास निस्संकोच होकर सब भाग लेते है अतः सनी अपनी दीमक्षा बलीया, संगीतारमकवा, शिवा, कोमलता, ग्वारस अपिजना और मब्बी मा uar को प्रकट करने का पूरा अवसर मिलता है। इसी लावाषिक तत्वों के कारण सो स्तन और मीच मोहक ही होते है। अषबार मील का पुट लम पाने है इन मौत सोनों की ममता बीवी जाती है। प्रति मात्र के विकास में में स्वोत्र बो सहायक है इष्टदेव की स्तुति की बाबर पति भावना को प्रकट करने की यह परम्परा बों से ही मिल जाती है। दो मिन विमानों की नि किन प्रकार से जिया मिली।पीना अर्जुन की अनेक नकों में स्तुति करता है। महाभारत पीक खोप मिळाले। स्तोत्र स्खलियों का म पुराण साहित्य में और अधिक विशाल स्याने मला होता है मामयत और विष्य पुराण पार्क रय है। मानवत पुराण में ब्रहमा विन पोष, सन या विभिन्न रिकि
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy