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________________ ८३१ आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य() स्ववन काव्य परंपराएं। 0 0 0 0 मीत, स्तोत्र और स्तवन साहित्य की परम्परा शिर प्राचीन संस्कृत साहित्य में मीवि काव्य पुस्तक और अन्य दोनों सियों में उपलब्ध होता है। मीत जीवन की रख पैजल अनुभूति होती है जो अपने में पूर्णतया मुक्त होती है। नीति रचनाओं में अपेक्षाकृत एक मधुरता होती है उसमें संगीत बन्च बिद्यमान रहता है। मधुर पदावली, और संक्षिप्त भावपूर्ण शब्दावली घरस सुबोध ली संगीत तथा अन्द में लार प्रस्तुत की जाती है। इनमें कोमलता मा जमा किसी भी मधुर भाव की उत्कुट अनुभूति होती है।गीत जीवन के मार्मिक अंश होते है जिनमें प्रायोपाल रसोद्रेक होता संस्कृत साहित्य में पुखक दो प्रकार के पाये जालौकिक वा धार्षिका लौकिक काव्यों में पीज मादि अनेक प्रकार हो सको और धार्मिक में स्तोत्र स्तवनादि। इस प्रकार के मुक्तक काव्यों की परम्परा स्कृत प्रकार और अपने सुरक्षित बली आ रही स्तवन कास्य परम्परा के अन्तर्गत आने वाले ये लौकिक और धार्मिक श्री क्षण, सम्पूर्ण और व्यक्तित्व प्रधान होइनमें व्यक्मिान भावारा और भक्षियों का पूरा होगा। साथ जीवन की बात भानानों का समापता है। त था प्राकृतिक सौन्दर्य पार अशा और भी बहाना बेटी । न मीयों में बना होती है। किन वन (डि बमेन्ट) हो सकी मार पावसानों की छाया (arte भासन कारण या अपिबतिर्मन मार फूट पड़ती । विगी और स्वरों का मालीमव होता । गली लिरिक) महभी किया गया है। पर वह पी गीत का wिal , कोमारानी दे सकता है। वस्तुतः इस विशाल पावसायों का होड़न करने वाले इन गीतों को हर
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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