SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 853
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८०८ इसके रचना कार वान सूरि के गुरु देवसूरि का काल कथा अत: इसका रचनाकाल १२वीं पताइदी के उत्तराईध में अथवा वी के पूर्वाध के प्रथम दो दशकों में ही कहीं रहा होगा। स्वा प्राचीन है और युद्ध की भमैकरता को कवि ने कुल ४८ छंदों में संजोया है। वीं शताब्दी में गुजरात और राजस्थान में युद्ध चल ही रहे थे अतः कवियो की समयानुकूल प्रेरणा स्वाभाविक थी जिसके फलस्वरूप पोर और उसके प्रसम की परवर्ती रास दोनों रचनाएं लिखी गई। भोर की इस भाषा में प्राचीनता द्वष्टिगोचर होती है।ति में रखना स्थान भी कहीं नहीं मिलता पर बहुत सम्भव है कि यह राजस्थान में ही रखना गया होगा। क्योंकि नादिदेव मूरि के शिष्यों की प्रसिद्धि नागौर सहुई जो मारवाड़ का प्राचीन नगर रहा है। रचना नमस्कार से प्रारम्भ हुई है।काव्यात्मक दृष्टि से यह कृति वीर रस की सुन्दर बना है।यो कि पूरा काम अद्घ के प्रसंग को लेकर शान्त रस में जाकर समाप्त हुआ है। कथा में परतेश्वर की दिग्विजय ही प्रमुख प्रसंग है। प्रथम पक्ति से १० पदों तक पक छन्द और ये पद से अन्त तक दूसरा सन्द प्रra for है। परबर के मर्व पर बाहुबली का विनकवि प्रारम्भ की विधि पाहमरसर देव, बालीमा विस बाबा की दो प्रपया खामिति बच्या एका माब, बोशिश न बडिख को बाहुवाति बाब याaat भाषा की रा बाबा और गाय की महिमा का अध्ययन अध सोमावार का प्रबार र निष्परित में पूर्व योग देता कवि विविध इन्टायों मारा काम में युद्ध के वातावरण को मारा है। विविध वि देखिए: -परवर माइली पीर-पद-१yोष पत्रिका अंक।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy