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________________ पूरी कवि कवि ने बारहमासा प्रारम्भ करने की अपनी ही मान्यता रक्सी कवि चैन से प्रारम्भ न कर बारहमासा मार्गशीर्ष से ही प्रारम्भ करता है। पूरी रचना कोश के विर का नुताय है। रखना में काव्यात्मक मरमता है।हीरामन्द पूरि की काव्य माना का परिचय उनकी विभिन्न प्रकार की अनेकों रनावों के विश्लेषण द्वारा पूर्व अध्यायों में दिया जा चुका है। बिरही कोश का परित बारमास लिए कर कवि ने अपने काव्य को विरह का लता स्त्रोत बनाकर प्रस्तुत किया है। कोश बास्य बारहमास के उपयुक्त नायिका है जिसका पारा मौवन और विकास यूक्तिमक की साना और विक्षिा प्राण दीवा की अगिन में पुलसकर रह गया। वस्तुतः प्रस्तुब बारामा में कवि ने बड़ी सफलता कोश के विरह अनुदाय का वर्णन किया है। पाषा सरस और प्रवाहपूर्ण है। महिमा बारमा की मालि की मे नेमिनाथ बारहमासा भी लिया है। रचनाका कि क्या सन अधालय बीकानेर में सुरक्षित है। प्रस्तुत रचना की पाक आदि के लिए एक बो उधरम इस प्रकार है। इसमें कई पाठ सम्बन्धी अटियां मिल जाती है: अरवि मसति श्रीमपि मरीईए बागीय पानीय गुरू पवार कि बोगी । पिट पिवर बरसात बीपि मरीश in अगरीमा बाकानी TMEETara पाखीपूर पानीको मरवारोबारी की मामालिनी मेरी मावरी सगरी ना किसान सा काम है। इस प्रकार बारमासा भानी चानीय, विरामान, रियों का वर्णन आदि भी मिलते है भासियों का सम्मा लिन भ्या मा।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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